Panchtantra ki Kahaniyan | पंचतंत्र की कहानियां | Panchatantra Stories

हम आप आपके बच्चों के लिए बेस्ट पंचतंत्र की कहानियाँ (Panchtantra ki Kahaniyan) लेकर आये हैं। जिसको पढ़कर न केवल बच्चों का ज्ञान बढ़ेगा, बल्कि उनका मनोरंजन भी होगा। हमारे बच्चों के कोमल मन में कहानियों के जरिये अच्छी बातें पहुंचाया जा सकता है। उनको परेरणादायक कहानियां खासककर पंचतंत्र की कहानियां के माध्यम से बेहतर सीख मिलेगी।

Panchtantra ki Kahaniyan | Panchatantra Stories in Hindi

आइये Panchtantra ki Kahaniyan | पंचतंत्र की कहानियां | Panchatantra Stories पढ़ना शुरू करते हैं-

तेंदुए की खाल में गधा

एक गांव में सुधाकर नाम का एक गरीब धोबी रहता था। उसके पास एक गधा था। सुधाकर के गधे को बहुत भूख लगती थी।
सुधाकर धोबी बहुत गरीब था। सुधाकर का गधा खाने की कमी के कारण बहुत कमजोर हो गया था।

एक दिन सुधाकर किसी काम से शहर गया था। शहर जाने के रास्ते में एक जंगल पड़ता था। सुधाकर जब शहर से गांव लौट रहा था। तो उसे जंगल में तेंदुए की खाल पड़ी दिखी। खाल को देखकर सुधाकर खाल के पास जाकर खड़ा हो गया और उसे उठाकर इघर-उघर देखने लगा।

सुधाकर को अचानक एक विचार आया। गधे की भूख शांत करने का उसने वह खाल उठा ली और अपने साथ लेकर घर चला गया।
रात होने पर सुधाकर ने अपने गधे को उस खाल को ओढ़ा दिया और पास वाले खेतों में उसे चरने को छोड़ दिया। किसानों ने रात को तेंदुए को खेत में टहलते देखा तो बीना शोर मचाए अपनी जान बचा खेत से भाग गए।

रात भर गधे ने खेतों में धरी-धरी फसल खाया और पेट भरने के बाद अपने घर की ओर चल दिया करता। सुधाकर खेत से आने के बाद गधे के उपर से तेंदुए की खाल हटा दिया करता। महीनों तक सुधाकर ने यही काम किया तेंदुए के डर से अंधेरा होने के बाद गांव वाले अपने घर से बाहर नहीं निकलते थे।

जल्दी ही गधा तंदरूस्त हो गया। अब सुधाकर भी खुश रहता और गधा भी पेट भर भोजन खा कर पूरे गांव में घुमता रहता।
एक रात गधा तेंदुए की खाल ओढे़ घास खा रहा था। तभी एक किसान ने उस गधे को पास से देख लिया और वह सोचने लगा कि तेंदुए घास कब से खाने लगे यह सोच कर किसान उस के और नजदीक गया। गधे ने अपने ओर आते किसान की पैरों की आवाज सुन खेत से निकल अपने घर की ओर भागा।

किसान से उसे भागते देखा तो उसके पीछे किसान भी भागा। थोड़ी दूर से ही उसने देखा कि गधे की शरीर से सुधाकर धोबी ने तेंदुए की खाल हटाई। उसके बाद तो फिर क्या था उस किसान ने शोर मचा-मचा कर पूरे गांव को इकठ्ठा कर लिया। सुधाकर धोबी ने पूरे गांव से हााथ जोर कर अपनी गलती की मांफी मांगी।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच पर झूठ का पर्दा अधिक समय तक नहीं टिकता।

बारहसिंगे के सुन्दर सींग

एक घने जंगल में एक बारहसिंगा रहता था। एक दिन जब वह झील के पास खड़ा पानी पी रहा था। तभी उसकी नजर पानी में अपनी तस्वीर पर गड़ी।

वह सोचने लगा मेरी सींग कितने सुदंर है लेकिन मेरे पैर कितने भद्दे। वह सोचने लगा कि मेरे साथ ईश्वर ने ऐसा क्यों किया?
तभी उसे शेर की जोरदार दहाड़ सुनाई दी। वह सोचा शायद शेर नदी के पास ही पानी पीने आ रहा है। यदि शेर ने मुझे यहां देखा तो मुझे मार ही डालेगा। उसने भागना शुरू कर दिया। शेर भी उसे भागता देख उसके पीछे दौड़ रहा था।

जब जान पर बन आती है तो बिना इघर-उधर देखे वह शेर से अपनी जान की पीछा छुड़ाने भाग रहा था। तभी उसकी सींग पेड़ की एक डाल में जाकर फंस गयी। उसने अपनी सींग छुड़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन सब बेकार था।

तब उसने अपनी आखरी समय में सोचा जिन्हें में भद्दा कर रहा था। मेरे उन पैरों ने मुझे खतरे से बचाया और जिन्हें मैं सुन्दर समझ रहा था वहीं सींग मेरे लिए प्राणलेवा सिद्ध हो रहे है। तब तक शेर भी उसके पास आ गया और एक ही वार में उसका काम तमाम कर दिया।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सूरत नही सीरत देखनी चाहिए।

बातूनी कछुआ | Panchatantra Stories in Hindi

एक नदी में दो हंस एक कछुए के साथ रहते थे। तीनों अच्छे मित्र थे। एक बार उस क्षेत्र में अकाल पड़ गया। उस गांव के सभी नदियां, झील तथा तालाब सुख गए।

पक्षियों तथा जानवरों के पीने के लिए पानी की एक बूंद भी नहीं थी। सभी प्यास के मारे पानी की तालाश में क्षेत्र में ईधर-उघर घुम दम तोड़ रहे थे।

पानी की तलाश में ये तीनों मित्र भी ईधर-उघर भटक रहे थे। कोई रास्ता जब ना सूझा तो तीनों मित्रों ने यह फैसला किया कि वह इस क्षेत्र से दूर, किसी ऐसी जगह चले जाएगें कि जहां पानी का अकाल कभी ना पड़ता हो। हर तरफ हरियाली और पानी हो।

कछुआ कहीं दूर जाने के रास्ते में एक अड़चन था। हंस तो आराम से उड़कर कही दूसरे जगह जा सकते थे। लेकिन अछुए के लिए इतना दूरी चलकर जाना कठिन था।

तभी कछुए के दिमाग में एक विचार आया। क्योंना एक लकड़ी को तुम दोनों तरफ से अपनी चोंच में लेकर एक उड़ों और बीच में, उस लकड़ी को जोर से पकड़ तुम्हारे साथ आकाश में उड़ सकूंगा।

कछुए के मन में यह भी चल रहा था। कहीं ये दोनों पानी की तलाश में मुझे छोड़ निकल गए तो मेरा क्या होगा?

कछुए की बात सुन हंस बोला, “हम तुम्हें अपनी चोंच में लेकर उड़ने के लिए तैयार है। पर एक बार फिर से सोच लो यह विचार तुम्हारा है। तुम बातुनी हो तुम बिना कुछ बोले रह सकोगें। अगर तुम बाते करनी के लिए अपनी मुंह खोलोगे तो तुमसे लकड़ी छूटी तो तुम सीधा जमींन पर गिरोगे और तुम्हारे पुर्जे बिखर जाएगें। हम वैसा कर सकते है जैसा तुम बोल रहे हो।”

कछुए ने बहुत सोचने के बाद, हंस को बोला भाई अगर मैं यहां रहा तो पानी के बिना कौन सा ज्यादा दिनों तक जी सकूंगा। उससे तो अच्छा अपने जीवन सही तरीके से जीने के लिए कुछ ना करने से बेहतर अपनी जिंदगी के लिए कुछ करूँ।
कछुए की बात सुनते ही, एक हंस ने मजबूत लकड़ी ढुंढ़ कर लाया और उसे एक छोड़ से पकड़ लिया। दूसरे हंस ने भी उस लकड़ी को दूसरी तरफ से पकड़ लिया।

कछुआ ने भी दोनों को सलाम कर लकड़ी के बीच में गया और उसे अपनी मुंह से कस कर पकड़ लिया।
हंस उसके बाद उड़ चले। पानी की तलाश न जाने उन तीनों को कहां ले जाने वाली थी। वे नदी, घाटी, कई गांव जंगल पार करते हुए। एक शहर के ऊपर आ पहुंचे।

अब वे शहर के लोग, इन तीनों को देख कर अपने घरों से बाहर निकल आए। बच्चे ताली बजाकर चिल्लाने लगे।
बातूनी कछूआ यह देखकर भूल गया कि वह हवा में मुंह से लकड़ी पकड़े लटका है। वह इस शोर व तालियों के कारण जानने को उत्सुक था।

उसने यह जानने के लिए मुंह खोला तो लकड़ी से उसकी पकड़ छूट गई और वह जमींन पर गिरकर पड़ा।
हंस जब जमीन पर उतर कर उसके पास आ कर देखा तो कछुआ दम तोड़ चुका था।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अच्छी सलाह पर हमेशा घ्यान देना चाहिए, उसमें हमारी भलाई होती है।

चूहा और संत। Panchtantra ki Kahaniyan with Moral

एक जंगल में एक संत तपस्या कर रहा था। जंगल के सभी जानवर उस संत के पास प्रवचन सुनने प्रतिदिन आया करते थे।

सभी जानवर आकर संत को चारों ओर से घेरकर बैठ जाते और वह संत जानवरों को अच्छा जीवन बिताने का उपदेश देता।
उसी जंगल में एक चूहा भी रहता था। वह एक दिन संत को कुछ भेट देने की सोच रहा था। चूहा जंगल में यहां-वहां भटकता कुछ ढूंढ़ रहा था। तभी एक बड़ी बिल्ली ने उस पर हमला बोल दिया।

वह बिल्ली झाड़ियों में छिपकर चूहे पर निगाह रखे थी। चूहा बेहद डर गया और भाग निकला सीधा संत के आश्रम की ओर।
वहां जाकर चूहा संत के पैरों में जा पहुंचा। चूहे को भयभीत देखकर संत ने पूछा उसे क्या हुआ?

चूहे ने अपनी सारी बीतें बताई। इसी बीच बिल्ली वहां चूहे के पीछे आ पहुंची। उसने संत से आग्रह किया कि उसे उसका शिकार ले जाने दे।

संत बेचारा धर्मसंकट में पड़ गया। संत कुछ सोचने लगा उसके बाद अचानक एक मंत्र पढ़ा और चूहे पर पानी डाल दिया, देखते ही देखते चूहा बिल्ली में बदल गया।

अब अपने से बड़ी बिल्ली को सामने देखकर पहली बिल्ली वहां से भाग गयी।
यह देख चूहा बहुत खुश हुआ। संत ने चूहे को कहां तुम्हारे पास यह शरीर तब तक है जब तक तुम्हारी कोई शिकायत जंगल के किसी जावनर की मेरे पास ना आई हो।

चूहा ने संत को वचन दिया वह किसी दूसरे जानवर को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। चूहा जंगल में पहले की तरह यहां-वहां घुम रहा था। चूहे को भूख लगी। वह सोचने लगा उसे क्या खाना चाहिए?

उसने सोचा मैं चूहे को नही खा सकता वह मेरे भाई बंधू है। क्यों ना मैं बिल्लयों को अपना शिकार बनाऊं? चूहा देखा बिल्लियां उसको देख भाग जाती है। वह अपने से छोटी बिल्ली को भी मार गिराता।

दूसरे जानवरों की तरह वह गुर्राना भी सीख गया था। बिल्लियों से बदला लेने के लिए वह उनसे भिड़ जाता था।

जंगल में सभी बिल्लियाँ उस नयी बिल्ली से परेशान हो गए थे। वह सोच रहे थे यह कोई दूसरे जंगल की बिल्ली है जो उन्हें अपना शिकार बना रही है। उन्होने सोचा क्यों ना हमें संत से मदद लेनी चाहिए। संत उस बिल्ली को इस जंगल से भगा देगें, तो हम अपना जीवन पहले की तरह बिता सकेगें।

अगले हि दिन सारी बिल्लीयां एक साथ इक्ट्ठा हो संत के आश्रम पहुंच गए। उन्होंने कहा, “बाबा इस जंगल में कहीं दूसरी जंगल से रास्ता भटक एक नई बिल्ली आ गई है। जिसने हमारा जीना मुश्किल कर रखा है। वह बिल्ली चूहे को अपना शिकार बनाने के बजाय वह कमजोर और छोटी बिल्लियों को अपना शिकार बना रही है। ऐसे मैं इस जंगल में हमारा रहना बहुत कठिन हो गया है। अब आप ही उस मुसीबत को इस जंगल से बाहर निकाल दीजिए।

संत ने कहां तुम लोग निश्चित होकर जाओ, अब वह बिल्ली तुम्हें इस जंगल में कभी नहीं दिखेगी।

संत के पास जैसे ही उस बिल्ली की शिकायत आती है। बिल्ली पहले वाली रूप में बदल चूहा बन जाता है।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है। अपनी ताकत पर अभी अभिमान नही करना चाहिए, तूफान में वही पेड़ सलामत होती है जो झुकना जानती हो।

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