Ramlal ka chamatkari hathaura: एक गांव में रामलाल नाम का एक लोहार रहता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी और एक प्यारी सी बेटी थी। जिसका नाम कोमल था। रामलाल बहुत ही मेहनती था।
एक दिन की बात है। रामलाल ने सुबह-सुबह अपनी पत्नी को बोला कि कुछ रोटी बना दो। मुझे दूकान में कुछ सामान लाना है तो आज शहर जाना होगा। शहर से लौटने में रात हो जाएगी।
उसकी पत्नी ने रामलाल के लिए रोटी बना दी। उसके बाद रामलाल अपनी बेटी कोमल से पूछता है। मैं शहर जा रहा हूँ क्या तुम्हें कुछ चाहिए। उसकी बेटी ने उसे एक गुड़िया लाने को बोला। उसके बाद रामलाल शहर के लिए घर से निकल जाता है।
शहर जाने के रास्ते में एक घना जंगल पड़ता है और उस जंगल में जंगली जानवर भी होते है। रामलाल जंगल पार करने के लिए तेज चलता हुआ जाता रहता है।
तभी उसे एक बाबा पेड़ के नीचे बैठा मिलते है। रामलाल भी थका हुआ होता है। वह भी बाबा के पास जाकर बैठ जाता है और पूछता है, “बाबा आप इस घने जंगल में आराम से कैसे बैठे है। बाबा बोले, बेटा रामलाल में तुम्हारी ही राह देख रहा था। मुझे भूख लगी है। अगर तुम्हारे पास कुछ खाने को तो मुझे दे देा।
रामलाल बाबा को अपने थेले से कुछ रोटी निकाल कर दे देता है और बाबा से पूछता है। आप कौन हो बाबा और आपको मेरा नाम कैसे मालूम हैं?
बाबा ने रामलाला को बोला मुझे और रोटी चाहिए। क्या तुम मुझे और रोटी दे सकते हो? रामलाल ने थेले से बची रोटी को भी निकाल कर बाबा को दे देता है।
रोटी खाने के बाद बाबा रामलाल को धन्यवाद देते है और बोलते हैं। बेटा मैंने तो तुम्हारी सारी रोटियाँ खा ली। अब तुम क्या खाओगें? रामलाल बोलता है। बाबा मैं शहर जा रहा हूं। वहा मैं किसी दूकान से कुछ लेकर खा लूगां।
मुझे खुशी है कि आप का पेट मेरी रोटी से भर गया। यह बोलकर बाबा से रामलाल जाने की अनुमति लेता है। बाबा रामलाल को एक हथौड़ा देते है और बोलते है। तुम इसे संभलकर रखना। ये मेरे गुरू ने मुझे दिया था। तुमने मेरा पेट भरा है तो मैं तुम्हें खाली हाथ नही जाने दे सकता।
रामलाल बोलता है। बाबा मैं एक लोहार हूं और मेरे पास पहले से बहुत सारे हथोड़े हैं। मुझे इस कि जरूरत नहीं है और मैं अभी शहर जा रहा हूँ। इसे लेकर कहां-कहा जाउंगा।
बाबा ने बोला ठीक हैं, मैं इसे तुम्हारे घर मैं किबाड़ के पिछे रख दूंगा। जब तुम शहर से लौटना तो वहां से ले लेना। यह बोलकर बाबा उसके पास से गायब हो गए।
रामलाल इधर-उधर देखा पर उसे बाबा नहीं दिखे। रामलाल को भी देर हो रही थी। इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं सोच पाता और शहर के रास्ता जाने लगता है।
शहर पहुंचकर रामलाल ने अपनी जरूरत की सभी चीजें खरीद लता है और अपनी बेटी के लिए गुड़िया। फिर भी रामलाल के पास अभी काफी पैसे बचे होते है। वह सोचता है पत्नी के लिए साड़ी भी लेलूं। वह भी खुश हो जाएगी। यह सोचने के बाद बहुत ही सुदंर साड़ी ले लेता है।
रामलाल कुछ खाना चाहता था पर उसका पेट उसे बिल्कुल भरा लग रहा था। जैसे की उसने अभी-अभी कुछ खाया हो।
रामलाल शहर में अपना सारा काम खत्म कर घर के लिए चल देता है। रामलाल घने जंगल से जब गुजरता रहता है। तो उसे बाबा की याद आती है। वह सोचता रहता है। आखिर वह बाबा कौन थे? वह मुझे कैसे जानते थे? यही सोचते हुए वह अपने गांव भी पहुंच जाता है। घर पहुंचने में रामलाल को काफी देर हो जाता है। जब वह घर के नजदीक पहुंचता है तो उसे भूख का एहसास होता है।
वह घर के अंदर जाते ही देखता हैं कि किबाड़ के पीछे हथौड़ा रखा हुआ है। उसे देखकर वह मुस्कुराता है और अपनी पत्नी और बेटी के लिए लाए उपहार उन्हें दे देता है।
वह अपनी पत्नी को बोलता है। मुझे खाने को जल्दी खाना दो भूख लगी है। उसकी पत्नी रामलाल को खाना परोसती है और रामलाल बहुत ही आंनद लेकर भोजन करता है।
सुबह जब वह अपना दूकान पहुंचता है। उस हथौड़े को अपने साथ ले जाता है। रामलाल जो भी बनाने के लिए सोचता है। उसे हथौड़े से बस एक बार ही मारता है। हथौरा सामान बना देता है।
रामलाल बहुत ही आश्चर्य होकर हथौड़े को देखता है। पूरे गांव के लोगों को रामलाल के जादूई हथौड़े के बारे में मालूम हो जाता है। रामलाल की दूकान पर ही सारे गांव वाले आने लगते है।
वर्तन हो या खेत में काम करने वाला कोई भी सामान रामलाल के हथौरे से मिनटों में बनकर मिल जाता है। एक दिन गांव के मुखिया ने रामलाल को बुलवाया और बोला रामलाल क्या तुम सामने वाला पहाड़ तोड़ सकते हो। शहर जाने में लोगों को इतनी तकलीफ होती है। जंगल के रास्ते जाना होता है।
पहाड़ तोड़कर शहर जाने का रास्ता यहां से अगर बन जाए तो बहुत ही अच्छी बात होगी। रामलाल मुखिया को बोलता है। मैं देखता हूं जैसे ही रामलाल ने एक हथौड़ा पहाड़ पर मारा वह पुरा टूट कर बिखर गया।
गांव के सभी लोगों ने उस मलवे को वहा से हटा कर सारे गांव के लोगों ने वहा पानी डालकर बहुत ही सुन्दर रास्ता बना दिया। रामलाल की चर्चा आसपास के सभी गांव में भी होने लगा। एक दिन रामलाल ने सोचा इस हथौरे से मेरा क्या फायदा है। इससे तो लोगों को फायदा होता है। उनकी चीजें झटपट बनकर उन्हें मिल जाती है।
ऐसा सोचकर रामलाल अगली सुबह ही बाबा को ढुढ़ने जंगल पहुंच जाता है। बाबा उसी पेड़ के नीचे बैठे मिलते हैं। रामलाल बाबा को देखते ही जो वह सोच रहा था उसे क्या फायदा उस हथौरे से बाबा को बोलता है। बाबा उस पर हंसने लगे और बोले तुम इस हथौरे से बहुत कुछ कर सकते हो। अपनी बुद्धी लगाओं।
रामलाल अपनी दूकान में जाता है और बाजार में मिलने वाले सारे बर्तन और खेत में काम आने वाले सामान औजार उसके पास जितना भी लोहा था। सब का कुछ न कुछ बना दिया।
जिसके बाद वह नया दूकान खोलकर बैठ जाता है। बाजार से कम पैसे में चीजें बेचने लगता हैं। धीरे-धीरे उसने शहर में भी एक बहुत बड़ी दूकान खोल लेता है और बहुत ही धनी आदमी बन जाता है। रामलाल ने अपनी बुद्धी लगाई पर बाबा के कहने पर।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है। आप किसी की भी मदद सच्चे मन से करोगें तो आपको भी जब कभी किसी की जरूरत होती है। तो आपकी भी मदद कोई ना कोई जरूर करता है।
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