Dadi Maa ki kahaniyan | दादी माँ की कहानियाँ | इकबाल ने स्वादिष्ट भोज खाया

किस बच्चों को दादी माँ की कहानियाँ (Dadi Maa ki kahaniyan) सुनना पसंद नहीं है? हर बच्चा बचपन में अपनी-अपनी दादी माँ से अच्छी-अच्छी कहानी सुनाने को फरमाइस करते हैं। जिसको हर दादी माँ को पूरा करना पड़ता है। जिस हिंदी कहानियों से हमें बहुत कुछ सिखने को मिलता है। जो कि जीवन में काफी काम आता है।

दादी माँ की कहानियाँ (Dadi Maa ki kahaniyan)

आज इसी कड़ी में आगे बढ़ाते हुए हम आपके लिए दादी माँ की कहानियाँ की बेस्ट कहानी “इकबाल ने स्वादिष्ट भोज खाया” लेकर आये हैं। आइये जानते हैं।

इकबाल ने स्वादिष्ट भोज खाया | Dadi maa ki kahani in hindi

मध्य सुमात्रा में एक नदी बहती थी। उसी नदी के किनारे एक इकबाल नाम का एक आदमी रहता था। वह अपना जिवनयापन के लिए, वहा के लोगों को कुरान पढ़कर सुनाया करता था।

इकबाल को लोग धर्म गुरू के नाम से भी पुकारा करते थे। इसलिए न सिर्फ अपने गांव में बल्कि आसपास के गांवों में भी उसका बड़ा मान था।
इकबाल के गांव के दोनों तरफ धनी आबादी वाले गांव थे। एक तो धारा की दिशा में और एक धारा के विपरित दिशा में।

यह एक इत्तिफाक की बात थी। एक ही दिन में एक ही समय पर इन दोनों पड़ोसी गांव के दो धनि आदमी ने भोजन का आयोजन रखा।
इकबाल बहुत प्रसन्न था, क्योंकि वह दोनों जगह निमंत्रित था। भोज वाले दिन इकबाल ने अपने सबसे अच्छे कपड़े पहने और घर से निकल पड़ा। आगे जाकर वह तय नही कर पा रहा था कि वह पहले किस गांव में जाए।

रास्ते में कुछ लोग आपस में बाते करते मिले कि नदी के धारा वाली दिशा के धनी के घर में दो मिठाईयां बनी है, और नदी के विपरीत दिशा वाले धनी के घर पांच तरह कि मिठाईयां बनी है।

वह सोच लिया कि जहां पांच तरह कि मिठाईयां बनी है उसी गांव में पहले जाना है। जब वो उस गांव पहुंचा तो वहां लोग उसके खाने के बारे में बुराईयां कर रहे थे कि खाना बनाया तो बहुत है, पर खाने में स्वाद ही नहीं है।

उससे अच्छा होता की दो मिठाईयां हि बनवाता तो बावर्ची खाने में ज्यादा ध्यान देते और खाना लजीज बनता जैसा एक और के यहां हम भोज खा कर आए।

उसका खाना कितना लजीज था। और खाना भी वह शाम से ही खीला रहा है। यह सुनते ही इकबाल वहां से उल्टे पैर फिर से निकल जाता है।
अंधेरी रात थी उस दिन इकबाल जल्दी-जल्दी उस गांव में दुबारा पहुंचता है। जहां भोजन शाम से ही हो रहा था। पर ये क्या इकबाल जब पहुंचा तो भोज खत्म हो चुका था। बिल्कुल सुन शान सी पड़ा हुआ था, सारे गांव के भी लोग खा कर सो चुके थे।

इकबाल का मन छोटा हो जाता है। रात भी काफी हो चुका था। इकबाल के पैरों में मानों अब जान ही नहीं थी, उसे जोरो से भुख भी लगी हुई थी, वह फिर दुसरे गांव की ओर चल देता है, दिमांग उसका तेज भाग रहा होता है। पर शरीर एक दम धीरे-धीरे चलता हुआ आखीर में गांव में पहुंचता है।

इकबाल के आंखों में आंसू आ जाते है। गांव पहंुचते ही क्यों की अब यहां भी भोज खत्म हो चुका होता है। पर कुछ लोग कुर्सी और टेबल मोर रहे होते है, वह इकबाल को देखते ही बोलते है, धर्म गुरू आप अभी आए है?

इकबाल ने जवाब दिया जी बिल्कुल तभी उस गांव का घनी आदमी बोल पड़ता है। धर्म गुरू लगते है उस गांव का भोज खाने में कुछ ज्यादा ही देर कर दिए।

यहां तो सब बरतन खाली हो चुका है, आपको कुछ भी नहीं दे पाउंगा। मुझे छमा करें। इकबाल ने जवाब दिया कोई बात नहीं फिर मैं अपने घर को चलता हूं रात भी काफी हो चूकीं हैं।

भारी मन से इकबाल लौट जाता हैं। और मन-ही-मन खुद को कोसता रहता है अभी में भी स्वादीष्ट भोजन खा चुका होता अगर दुसरे की बात नहीं सुनता तो अधिक के लालच मे थोड़ा भी हाथ से चला जाता है।

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