Short Stories with Moral: किसी गांव में एक चतुर नाम का लड़का था। चतुर जब आठ वर्ष का हुआ तो उसके माता पिता गुजर गए। चतुर के गांव में एक बहुत प्रसिद्ध मंदिर था। उस मंदिर में हर रोज ढ़ेरो चढ़ावा चढ़ाए जाते थे। मंदिर का पुजारी बुढ़ा हो गया था। वह मंदिर की देखभाल और सफाई करने में असमर्थ हो गया था।
चतुर के रिश्तेदार जब उसे पेट भर खाने को नही देते तो चतुर अपने गांव के मंदिर में आ जाया करता था और मंदिर की सफाई और पंडित के काम में उसका हाथ बंटाया करता था। भगवान के लिए प्रसाद चढ़ाया जाता था। मंदिर का पूजारी उसमें से कुछ फल हर रोज चतुर को खाने के लिए दिया करते थे।
चतुर धीरे-धीरे पंडित के बहुत करीब हो गया था। वह अब मंदिर के बरामदे में ही रहता और हर रोज मंदिर के पंडित की तरह सुबह उठकर पूरे मंदिर की सफाई और पूजा अर्चना भी किया करता।
एक दिन मंदिर के पंडित की अचानक बहुत तबियत बिगड़ गई। जिसके बाद पुजारी ने चतुर से कहा पास वाले गांव के मंदिर के पुजारी के बेटे को बुलाकर ले आओ। और उसे कहना अपना सामान लेकर आए मालूम नही, मैं कब तक जीवित रहूंगा। अब समय आ गया है कि मैं इस मंदिर की जिम्मेदारी किसी और को दे दूँ।
चतुर पुजारी की बात सुन कर दंग रह गया। उसने बोला आप उसे क्यों बुलाने कह रहे हो? मैनें भी तो आपसे सब कुछ सीख लिया है। इस मंदिर का सारा काम तो मै ही करता हूँ। अब आप क्यों किसी और को मंदिर की पूजारी की जगह लाना चाहते हो? इस काम को मैं भी तो कर सकता हूँ।
पुजारी चतुर की बात सुन हंस पड़ा और बोला बेटा तुम जात से नाई हो, पंडित नहीं हो। पूजा-पाठ का काम पंडित ही करता है नाई नही।
चतुर पुजारी की बात सुन गुस्से में मंदिर से बाहर चला गया। वह बड़बड़ाने लगा। इतने सालों से मै मंदिर में पूजा, पाठ किया और साफ-सफाई भी किया है। आज इस पुजारी को मेरा जात ज्ञात हुआ है। इतने वर्षो से मै यह सोचता था कि यह मंदिर ही मेरा घर हैं और एक जात अलग होने से मै मंदिर में पूजा नही करा सकता?
मैं मंदिर का सारा काम कर सकता हूं तो फिर मुझे पाठ और पूजा करवाने की ज्ञान क्यों सिखाया? अचानक चतुर को एक तरकीब सुझी।उसने सोचा क्यों ना मैं इस गांव से दूर चला जायूँ। जहां मुझे कोई नहीं जानता हो और मुझे तो पूजा, पाठ करवाने के अलावा कुछ नहीं आता भी तो नहीं। मैं वहां अपनी जाति ब्राहृमण बता कर अपना गुजारा कर लुंगा और लौट कर इस गांव कभी नहीं आउंगा।
चतुर चलते-चलते बहुत दूर निकल गया और अब रात होने वाली थी। उसने सोचा क्यों ना आज रात यही किसी मंदिर या किसी के घर के बरामदे में आराम कर लूं। भूख भी लग रही है, तभी उसे सामने एक मकान दिखा और उसने उसके दरवाजे को ठक-ठकाया। जिसके बाद घर के अंदर से एक व्यक्ति बाहर आया। उसको चतुर ने बोला मैं एक ब्राहृमण हूँ। मैं बहुत दूर से चल कर आ रहा हूँ। क्या आज रात मै तुम्हारे यहाँ आराम कर सकता हूँ ?
व्यक्ति ने बड़े सम्मान के साथ बोला, “मै तो एक नाई हूँ क्या आप मेरे यहां रूकना पसंद करेंगे? आप बोले तो मैं आपका इस गांव के ठाकुर के घर ले जा सकता हूँ। वहां आपको ज्यादा खातिर की जाएगी।
चतुर ने भी उस व्यक्ति से पूछा कहां है ठाकुर का घर? चलो उसके पास ही मुझे ले चलो ठाकुर के घर पहुंचते ही चतुर की खुब आव भगत हाने लगी और तरह-तरह के पकवान खाने को मिले। चतूर वहीं आराम से रात को रूका और जब सुबह हुई तो चतुर ने ठाकुर से बोला इस गांव मैं मंदिर कहां है?
ठाकुर ने बोला यहां छोटी सी मंदिर है और वहां पूजारी नहीं है। चतुर को मौका मिल गया। उसने तुरंत कहां आप बोले तो मैं यहीं रूक कर आपके गांव की मंदिर की देख-रेख कर सकता हूं।
चतुर की बात सुन कर ठाकुर ने भी उसे गांव मै रहने की अनुमति दे दी। चतुर अपनी सीखी हुई ज्ञान से उस मंदिर का ही नही बल्कि आसपास के गांव में भी जाकर पूजा-पाठ करवाने लगा।
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