Raja aur Pujari ki Prernadayak Kahani | सिदी मान्तरा का ज्ञान काम आया

Raja aur Pujari ki Prernadayak Kahani: जावा सम्राज्य में कभी एक ब्रह्माण रहता था। उसका नाम सिदी मान्तरा था। वह अपनी ज्ञान के लिए दूर-दूर तक विख्यात था।

Raja aur Pujari ki Prernadayak Kahani

सिदी मान्तरा के ज्ञान से राजा हमेशा खुश रहते थे, राजा ने तभी सिदी मान्तरा को अपने राज्य में बहुत सी सुख-सुविधाएं प्रदान की थीं।
सिदी मान्तरा का विवाह एक बहुत ही सुंदर कन्यां से हुआ था। और कुछ ही वर्ष के बाद उसे एक बहुत प्यारा बेटा हुआ। जिसका नाम उसने मानिक रखा था।

मानिक धिरे-धिरे बड़ा हुआ तो उसमें बहुत बुद्धि और ज्ञान अपने पिता के जैसा ही प्राप्त कर रखा था। वह अपने मां और पिताजी के साथ-साथ उस राज्य के राजा का भी बहुत ही प्रिय था। उस राज्य में उसे अपने पिता के जैसा ही सम्मान मिलता था।

इतना प्यार और सम्मान इतने कर्म उम्र पर ही उसने प्राप्त कर लिया था। पर मानिक में एक बुराई भी थी, वह किशोर अवस्था से ही जुआ खेलने लगा।

वह सदा ऊंची बोली लगाता और अक्सर ही हार जाता। उसने अपने माता-पिता की संपत्ति धिरे-धिरे जुए में लुटा दी। गांव के लोगों से उधार ले-लेकर भी उसने जुआ की भेंट चढ़ा दिए। सिदी मान्तरा ने बहुत प्रयत्न किया कि उसका बेटा बुरी आदतें छोड़ दे लेकिन उसके सारे प्रयास बेकार गए।

जब मानिक से लोग उधार चुकाने के लिए बोलने लगे तो उसने अपने पिता से बिनती की वह उसके लिए कुछ करें क्योंकि उनके पास तो अनेकों सिद्धियां हैं। पुत्र से मिले दुःख से सिदी मान्तरा बहुत दुःखी थे, पर अपने पुत्र को इस तरह कष्ट में वह नहीं देख पा रहे थे।

सिदी मान्तरा अपने गांव के साथ-साथ परोस के गांव में भी पूजा-पाठ करवाने जाना शुरू कर दीया। सिदी मान्तरा एक दिन सोच रहे थे, इतना धन इकठा तो में इस जन्म में नही कर सकता, इतना उधार उनके पुत्र ने सब से लिया हुआ हैं। यहीं विचार करते-करते एक रात सिदी मान्तरा की आंख लग गई।

आंख लगते ही वह सपना देखने लगे की पूर्व दिशा में एक ज्वालामुखी पर्वत हैं। पर्वत की गहराई में खजाना छिपा हुआ हैं। इस खजाने की निगरानी एक साॅप जिसका नाम नागा बेसुकी के जिम्मे है। यदि तुम वहां और नागा बेसुकी से बिनती करों तो वह जरूर तुम्हारी मदद करेगा।
सुबह होते हि सिदी मान्तरा ने जो रात को सपना देखा था। उस सपने के बारे में अपनी पत्नी को बताया।

उसकी पत्नी ने उसे सलाह दि जा के देखने में क्या हर्ज हैं। चलों मै भी आपके साथ चलती हूं आखीर जो हमारी दशा हैं उसमें दोष तो मेरा भी हैं हमने बचपन में अपने बेटे को इतना लाड प्यार दिया कि आज वह ऐसा हो गया हैं। हमने अपने बेटे को ज्ञान की सारी बातें बताई मगर हमने सामाजिक शिक्षा नहीं दि जिसके कारण आज वह ऐसा हैं।

उनदोनों ने आपस में विचार कर घर से निकल गए। यह कोई सुखद यात्रा नहीं थी। रास्में में उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा-धने जंगल, कटीले-पथरीले रास्ते, झरने, जंगली जानवर। लेकिन अंततः वह राह की सारी मुश्किलों से जूझते हुए आखिरकार वह पहुंच गए अपनी मंजिल तक।

मुहाने पर जाकर सिदी मान्तरा साथ लाई हुई पूजाकी घंटी बजाने हुए मंत्र पढ़ना आरंभ कर दिया। कुछ ही समय के बाद नागा बेसुकी प्रकट हुआ। सिदी मान्तरा और उनकी पत्नी दोनों ने अपने हाथ जोर कर नागा बेसुकी को अपना परिचय देते हुए। अपनी सारी परेशानी बताई।

नागा बेसुकी चुप हो कर उन दोनों की सार बातें सुनता रहा। नागा बेसुकी जानता था कि सिदी मानता ईश्वर का बहुत बड़ा भक्त हैं। और यह भी कि वह कष्ट में है। उसने आपने शरीर को इस तरह झटका कि ढेरों मुक्ता, माणिक, जवाहरा उसके शल्कों में से गिर पड़े।

सिदी मानता इनमें से अपने जरूरत के मुताबिक तुम ले जाओ; इतना कह कर नागा बेसुकी वहां से चला गया। सिदी मानता और उसकी पत्नी ने अपने जरूरत के मुताबिक धन समेट लिए, और बेसुकी को धन्यवाद दिया।

आंधी रात हो गई। माणिक आपने माता-पिता के लिए बहुत चिंतीत था। क्यों का माणिक को माता-पिता घर से जाते वक्त बस इतना हि बोले थे, कि वह घर वापस तभी आएगें जब वह मुझे कर्ज की पिड़ा से मुक्त करा पाएगें।

माणिक पुरे घर में अपनी आंखों में पचतावा के आंसु ले इघर-उघर घुम रहा था। वह सोच रहा था कि आखिर वह दोनों गए कहां होगें सुबह जब माता-पिता ने उसे जाते वक्त कर्ज के पैसे के बारे में बोल रहे थे तो वह सोचा की राजा के पास गए होगें या फिर किसी दूसरे गांव में पूजा-पाठ करवा रहे होगें।

मगर पूरा दिन और आंधी रात हो गई तो माणिक का दिल बैठा जा रहा था। तभी दरवाजे पर दस्तख हुआ माणिक दौड़ता हुआ दरवाजे पर गया। और दरवाजा खोला, खोलते ही माता पिता को सामने देख वह बहुत खुश हुआ। पर वह अपने मां के गले लग कर रोने लगा।

माता-पिता यूं माणिक को रोता देख घबरागए। माणिक थोड़ा सांत हुआ और उनसे पूंछने लगा की वह दोनों कहां थे अब तक। उनदोनों ने उस वक्त कुछ नहीं बोला और माणिक को किसी और बातों में उलझा दिया। सुबह होते ही सबसे पहले उनदोनों ने उस धन से माणिक का पूरा कर्ज चुका दिया।

माणिक ने मां-पिताजी से उस धन के बारे में काफी पूछा पर उनदोनों ने उस धन की प्राप्ति के बारे में कुछ भी नहीं बताया। माणिक अपने माता-पिता से अपनी गलती की क्षमा मांगा और अपनी गलती को दुबारा कभी नहीं दूहराएगा वचन भी दिया। अब वह अपने पिता की जगह राजा के दरवार में पूजा-पाठ करवाने लगा।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है। अगर किसी से कोई गलती हो जाती है। तो उसे सुधरने का एक मौका देना चाहिए। और अपनी गलती कभी नहीं दोहराना एक सच्चे और अच्छे इंसान की पहचान होती हैं।

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