Raja and Sevak Story in Hindi | अंधभक्त स्वामिभक्त सेवक की कहानी |

आज आप हमारे इस पोस्ट में अंधभक्त स्वामिभक्त सेवक की कहानी (Raja and Sevak Story in Hindi) और बीरबल की कहानी पढ़ेंगे। जिसमें ऐसे तो दोनों अलग-अलग कहानी है।  मगर आपको इसमें कुछ सीखने को मिलेगा।

Raja and Sevak Story in Hindi

एक शहर का नाम सुषमापुरी था वह बहुत ही सुंदर नगर था। नगर में चारों तरफ हरियाली थी। वहां के राजा का नाम शुद्रक था। शुद्रक की पूरी जनता धार्मिक विचारों की थी। अधर्म उनके राज्य मैं नहीं था।

एक दिन की बात है राजा का दरबार लगा हुआ था। तभी एक व्यक्ति दरबार में आया। व्यक्ति का नाम वीरवर था उसने बताया उसके परिवर में चार सदस्य थे। एक दिन स्वयं, उसकी पत्नी धर्मवती, उसका पुत्र सत्यवीर और उसकी कन्या वीरवती। वीरवर ने शिष्टाचारपूर्वक राजा का अभिवादन किया और फिर नौकरी की प्रार्थना करने लगा।

वीरवर से राजा प्रभावित हुए और उनसे पूछा-‘‘आप क्या काम कर सकते हो?’’ वीरवर ने विनम्र वाणी से कहा- ‘‘जो भी काम हमें आप सौंपे देंगे, उसे, मैं स्वीकार करूँगा। राजा ने प्रश्न किया-‘‘प्रतिदिन के हिसाब से कितना वेतन लोगे?’’

वीरवर ने राजा से कहा पाँच सौ मुद्राएँ।’’ वेतन की बात सुनकर राजा आश्चर्य से उसके मुँह की ओर देखने लगा, और मन मैं कुछ विचार करके वेतन देना स्वीकार कर लिया।

राजा ने कहा-‘‘कल से तुम नौकरी पर आ जाना’’। अगले दिन वीरवर राजा के पास आया तो राजा उसे काम सौंपते हुए कहा-‘‘हथियारों के साथ तुम सुबह से दूसरे पहर तक सिंह द्वार पर बैठोगे। फिर अपने घर चले जाना और फिर रात को तलवार लेकर राजमहल की रखवाली करोगें। हर रोज तुम्हें पाँच सौ मुद्राएँ मिल जाएगी।

एक दिन रात को जब वीरवर पहरा दे रहा था, तब राजा ने एक स्त्री के रोने की आवाज सुनी जो बहुत दूर से आ रही थी। उस आवाज को सुनकर राजा ने वीरवर से कहा जाकर पता करो कवह कौन रो रही है और क्यों रो रही हैं।’’ जिधर से रोने की आवाज आ रही थी वीरवर उस तरफ चल पड़ा, उसने देखा नदी के बीचोंबीच जल में एक स्त्री रो रही हैं।

वीरवर ने उस स्त्री से पूछा- ‘‘क्या आप बताने कि कृपा करेगी कि आप क्यों रो रहीं हैं?’’

उस स्त्री ने कहा-‘‘ मैं राजा शुद्रक की राजलक्ष्मी हूँ। शुद्रक बड़ा धार्मिक शाशक है। मैं इसलिए रो रही हूँ कि आज से तीसरे दिन शुद्रक की मृत्यु निश्चित है। उसकी मृत्यु के बाद मुझे ऐसा शाशक नहीं मिलेगा।’’ ऐसा सुनकर वीरवर चैंक गया और विनम्र स्व में बोला-‘‘ हे देवी! इसका कोई उपाय नहीं हो सकता क्या?’’ स्त्री के कहा उपाय तो हो सकता है, पर वह बहुत कठिन है। वीरवर ने कहा-‘‘कृप्या कर आप मुझे वह उपास तो बतादिजिए।

स्त्री ने कहा अगर तुम अपने पुत्र की बली चंडिका देवी को चढ़ा दो तो राजा की मृत्यु टल जाएगी और वह सौ वर्ष तक जीता रहेगा।’’ वीरवर बहुत प्रसन्न होकर कहा-‘‘ देवी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!

वीरवर अपने बेटे को घर से लिया और देवी मां के मंदिर मैं अपने बेटे की बली लेने ही वाला था कि देवी मां प्रकट हो गई और वीरवर का हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया।

देवी मां बोली तुम लोग इतने अंदभक्त कैसे हो सकते हो अपने ही पुत्र को मारने जा रहे हो! हमें सीर्फ मनुष्य का प्यार चाहिए ना की बली और राजा को सौ वर्ष का जिवन दान देकर चली गई। वीरवल देवी मां को प्रणाम कर पुत्र के साथ घर वापस लौट गया।

बीरबल ने चोर को पकड़ा।

एक व्यापारी था। वह अपने काम में बहुत ही ज्यादा व्यस्त रहता था। उसकी पत्नी और एक बेटा था जोकि दूसरे शहर में रहते थे। व्यापरी को जब काम से फुरस्त मिलती तो वह उनके पास चला जाता।

व्यापारी जिस शहर में रहता था। उस घर में पांच नौकरों को अपने साथ ही रखा हुआ था। एक दिन व्यापारी अपने पत्नी और बच्चे से मिलने दूसरे शहर गया। और दस दिनों तक वह लौटकर नहीं आया।

व्यापारी जब लौटकर घर आया, और अपने कमरे में गया तो देखता है कि उसकी तिजोरी खुली पड़ी है और पूरी तिजोरी खाली है।
उसकी मेहनत की पूरी कमाई चोर कोई चोरी कर चुका है। व्यापारी परेशान हो गया। और जोर-जोर से चिल्लाने लगा। व्यापरी की आवाज सुनकर घर के सारे नौकर व्यापारी के कमरे कि ओर भागे।

घर के सारे नौकरों को एक साथ देखकर, व्यापारी ने उनसे गुस्से में पूछा, “तुम सब लोगों के होते हुए घर में इतनी बड़ी चोरी कैसे हो गई?
जब चोर चोरी करने आया तो तुम सब कहां थे। नौकरों में से एक नौकर ने जवाब दिया। मालिक हमें कुछ भी नहीं पता की चोर कब आया। और चोरी कब हुई हम सब यही रह रहे थे।

नौकरों की बातें सुनकर व्यापारी और गुस्से से आग बबूला हो उठा और बोला, “मुझे तो लगता है कि तुम पांचों ने ही मिलकर चोरी की है।
सच बता दो। नहीं तो अब तुम लोगों का हिसाब अब बादशाह अकबर ही करेंगे।” यह कह कर व्यापारी घर से निकल गया और महल की ओर चल पड़ा।

बादशाह अकबर के दरबार मै जब व्यापारी पहुंचा तो बादशाह अकबर दरबार में उस वक्त बैठकर सभी जनता की एक-एक कर समस्या सुन रहे थे। व्यापारी अपने बारी की प्रतिक्षा करने लगा।

जब व्यापारी की बोलने की बारी आई तो उसे बोलने को कहा गया। “तो व्यापरी ने बोला हुजूर, न्याय, मेरी समस्या को दूर करें।”
बादशाह ने पूछा, “क्या हुआ? कौन हो तुम और तुम्हारी क्या है समस्या?” व्यापारी ने बोला, “मैं एक व्यापारी हूं। आप ही के राज्य में रहने वाला, महाराज।

कुछ दिनों के लिए इस शहर से बाहर गया था। अपनी पत्नी और बेटे से मिलने उनके पास गया था। और जब वापस आया, तो मेरी सारी तिजोरी लुट चुकी थी। मैं अपनी पूरी जिंदगी में जो भी कमाया था सब बर्बाद हो गया, हुजूर। मेरी मदद करें।” बादशाह ने व्यापारी की सभी बातों को ध्यान से सुनकर व्यापारी से कुछ सवाल पूछे, कितना सामान था, चोरी क्या-क्या हुआ, और क्या उसे किसी पर शक है।

बादशाह अकबर को व्यापारी के सभी सवालों के जवाब मिलने के बाद अकबर ने कुछ सोचा और व्यापारी का मामला बीरबल को सौंप दिया और कहा व्यापारी से कहा कि असली चोर जल्द से जल्द पकड़ने में बीरबल उसकी मदद करेंगे।

सुबह का वक्त था। बीरबल व्यापारी के घर पहुंचे। उन्होंने सभी नौकरों को बुलाने को कहां। बिरबल ने आते ही नौकरों से सवाल जवाब शुरू कर दिया पूछा कि चोरी की रात आप सभी कहां थे? सभी नौकरों ने कहा कि वो व्यापारी के घर में ही रहते हैं।

और पिछले दस दिनों जब व्यापारी उस शहर में नही था तब भी वह सभी व्यापारी के घर में ही रह रहे थे। एक नौकर ने बोला मालीक दस दिनों के लिए बाहर गए थे। तो मैं यह कैसे बता सकता हूं कि चोरी कब हुई यह तो जब मालिक आए है। और उन्होंने अपना कमरा खोला है। तो हमें चोरी के बारे मैं मालूम चला। यह बात व्यापारी के नौकर ने बिरबल को बोला।

बीरबल ने उन सभी नौकरों की बात मान ली और कहा, “आप सभी को परेशान होने की जरूरत नहीं है। मेरे हाथ में ये पांच जादुई लकड़ियां हैं। मैं आप सभी को एक-एक लकड़ी दूंगा।

आप लोगों में से अगर कोई चोर होगा, तो उसकी लकड़ी आज रात दो इंच लंबी हो जाएगी और चोर पकड़ा जाएगा। और अगर आप में से कोई भी नहीं होगा। तो भी हम असली चोर को भी पकड़ ही लेगें।

फिर हम सभी कल यहीं मिलेंगे।” यह कह बीरबल ने सभी नौकरों के हाथों में एक-एक लकड़ी पकड़ाई और वहां से चले गए। दिन ढल गया रात हो गई। अगले दिन बीरबल फिर सुबह-सुबह व्यापारी के घर पहुंचे।

बिरबल ने एक-एक कर सभी नौकरों को अपनी लकड़ी के साथ बुलाया। जब बीरबल ने सबकी लकड़ी को एक साथ रखा तो उसमें से एक लकड़ी छोटि देखी।

बस फिर क्या था। बीरबल ने तुरंत सिपाहियों को उस चोर को पकड़ने का आदेश दिया। व्यापारी पूरी घटना को समझ नही पाया। बीरबल ने तो लकड़ी बढ़ने को कहा था। पर लकड़ी तो छोटी हो गई थी। बीरबल ने व्यापारी को समझाया कि लकड़ी में कोई जादु नहीं थी।

चोर को इस बात का डर था। उसकी लकड़ी दो इंच बड़ी हो जाएगी तो वह पकड़ा जाएगा और इस डर से उसने अपनी लकड़ी को दो इंच काट दिया ताकि वह बड़ा भी हो जाएगा तो सभी लकड़ीयों के बराबर ही दिखेगा। और वह नहीं पकड़ा जाएगा।

पर लकड़ीयों में कोई जादू नहीं थी। लकड़ी छोटि होने के कारण असली चोर पकड़ा गया। और व्यापारी बीरबल की चतुराई से बहुत प्रभावित हुआ व्यापरी को सारा समान जो उसके तिजोरी से चोरी हुई थी वापस मिल जाती है। और व्यापारी बीरबल को धन्यवाद किया।

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