Motivational Story in Hindi for Students | मस्ती का पाठशाला

Motivational Story in Hindi for Students: मस्ती का पाठशाला – एक शहर में एक पिंटू नाम का लड़का रहता था। वह छह वर्ष का था। पिंटू अपनी मां के साथ रहता था। ऐसे तो वह बहुत शांत स्वभाव का था और ज्यादा किसी से बात नहीं करता था। उसे अकेला रहना ज्यादा पसंद था।

एक दिन पिंटू की मां उसके कमरे में आई और बोली जाओ जाकर खेलो। पिंटू को देखा वह खिड़की से बाहर गली में खेलते बच्चों को चुपचाप देख रहा है। वह अपनी मांग से बोला कि, नही मां मुझे खेलना पसंद नही है। मां बोली सारे बच्चे शाम को खेलते है तुम्हें भी खेलना चाहिए बेटा यह तुम्हारे लिए बहुत जरूरी है।

पिंटू को स्कूल जाना भी पसंद नही था। वह घर से बाहर जाना ही नहीं चाहता था। वह मां के डर से स्कूल चला तो जाता था मगर क्लास में सबसे पीछे वाले बेच पर छिप कर बैठा करता था। वह स्कूल की छुट्टी होने का इंजतार किया करता था। वह स्कूल में भी किसी से बात नही करता था।

टीचर जब क्लास में पुछते थे कि पिंटू तुम क्या कर रहे हो तो वह टीचर को बोलता छुट्टी होने का इंतजार कर रहा हूँ । यह सुनते ही उसकी टीचर उसे कभी बेंच पर खड़े कर देती तो कभी क्लास रूम के बाहर निकाल देती। इस तरह से पिंटू का रोज स्कूल टाईम बीत जाया करता था जिसके कारण पिन्टु अपने क्लास के बच्चों से पढ़ाई में भी धिरे-धिरे पीछे होता चला जा रहा था।

एक दिन स्कूल में पेपर का जब रिजल्ट आया तो पिन्टु के नंबर सारे विषय में कम था। जिसकी वजह से पिंटू पर टीचर फिर से नाराज हुई। उसे इस बार प्रिंसिपल के कमरे में ले गई और बोली सर पिंटू को अब आप ही समझाइए। इसका मन पढ़ाई में बिल्कुल ही नही लगता। इसके सभी विषय में नंबर भी कम आए है। इस तरह से यह तो फेल हो जाएगा।

प्रिंसिपल ने टीचर से बोला कि आप पिंटू को यही छोड़कर जाओ। मैं इससे अकेले में बात करना चाहता हूँ। प्रिंसिपल ने पिंटू से पूछा क्यों बच्चे तुम्हारे नम्बर इतना कम क्यों आया? तुम्हें क्या दिक्कत है टीचर ठीक से नही पढ़ाती या कोई और बात है।

पिंटू ने प्रिंसिपल से बोला- मुझे स्कूल आना बिल्कुल भी पसंद नही है। मुझे आपनी मां के पास रहना ज्यादा ठीक लगता है। स्कूल में सिर्फ टीचर बोलती है और मैं तो यहां किसी भी बच्चों का नाम भी नहीं जानता, जिसके साथ टीचर मेरे टेस्ट पेपर का नम्बर मिलाती है। मुझे कैसे मालूम होगा की वह कितना पढ़ता है या जनता है, यह तो सिर्फ टीचर को मालूम होता है।

प्रिंसिपल पिंटू की बात को समझ गया और तभी उसने कुछ सोचा और दूसरे दिन से स्कूल में एक पीरियड पढ़ाई का कम कर दिया। उस टाईम में फ्री क्लास टाइम होता था। आपसे में बच्चें गेम खेले या फिर पढ़ाई करें आपस में वो ये डिसाईड करते थे। वो लोग बिना शोर मचाये खेलें नही तो यह फ्री क्लास कल से नही होगा। बच्चें भी इस टाईम को बिना शोर मचाये आपस में खेलते और इंजॉय करने में बिताने लगे थे।

इस तरह से फिर पिंटू भी बच्चों के साथ बात करना शुरू कर दिया। उनके साथ गेम खेलता अपनी बातें शेयर करता और कुछ लोग पिंटू के बेस्ट फ्रेंड भी बन गए। अब पिंटू रोज सुबह उठकर स्कूल जाने का इंतजार करता अपने दोस्तों से मिलने के लिए और पढ़ाई करने में भी वह धीरे-धीरे ठीक हो गया।

यह देखकर पिंटू की मां बहुत प्रसन्न हुई कि मेरा बेटा भी दूसरे बच्चों के जैसा रहने लगा हैं।

हमें इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि बच्चों को डांटने और दंडित करना हर प्रॉब्लम का सलूशन नहीं होता, कभी-कभी बच्चों को उनके मन पे छोड़ देना और प्यार से सही रास्ता दिखाना जरूरी होता है, ठीक उस प्रिंसिपल साहब की तरह।

यह भी देखें-

Spread the love

हम लाते हैं मजदूरों से जुड़ी खबर और अहम जानकारियां? - WorkerVoice.in 

Leave a Comment

error: Content is protected !!