Manohar Kahaniya in Hindi | मनोहर कहानियां इन हिंदी pdf

Manohar Kahaniya : आज हम अपने कहानियों की कड़ी में आपके लिए मनोहर कहानियां लेकर आये हैं। जिसमें आप विभिन्न तरह की मनोरंजक, ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक कहानियां पढ़ेंगे। यह कहानियां आपके न केवल हसाएंगी बल्कि आपको बहुत कुछ सिखने को भी मिलेगा। आइये हम पढ़ने की शुरुआत करते हैं-

Manohar Kahaniya in Hindi | उड़ने वाला संदूक

काफी समय पहले की बात है। एक मशहूर जादूगर काफी बूढ़ा हो चला था। उसने सोचा वह अपनी जादुई सामान और जादू किसी जरूरत मंद व्यक्ति को दे दूं।

एक दिन एक गरीब नौजवान जादुगर के घर के पास से गुजर रहा था। उसे किसी की कराहने की आवाज सुनाई दी। नौजवान आवाज सुन कर वहां रूक गया। और उस घर के अंदर आया, घर के अंदर जाने के बाद उसने देखा एक बुढ़ा व्यक्ति बहुत बीमार और बेड पर सोया अपनी दर्द भरी आवाज निकाल रहा था।

नौजवान बुढ़े व्यक्ति के पास आकर पूछा क्या हुआ बाबा?

बुढ़ा व्यक्ति बोला, “उसे भूख लगी है और उसके पैरों में बहुत पीरा भी हो रही है”। नौजवान ने तुरंत उस बुढ़े व्यक्ति के लिए उसके घर में खाने के लिए दाल-चावल बना कर उसे खिलाया और उसके पैरों में तेल की मालिश भी कर दी।

बुढ़ा उस नौजवान से बहुत प्रसन्न हुआ। उसने बोला तुम क्या करते हो, और कहां रहते हो? नौजवान ने बोला में एक अनाथ हूं। और मैं अभी दूसरे शहर कमाने जा रहा था।

बुढ़े व्यक्ति ने बोला तुम दूसरे शहर क्यों जा रहे हो? काम तो इस शहर में भी कर सकते हो?

नौजवान ने जवाब दिया मुझे एक शहर से दूसरे शहर घुमना बहुत पसंद है। और मुझे नये लोगों से मिलना जुलना अच्छा लगता है। में एक अनाथ हूं इसलिए मैं पूरी दुनिया को अपना परिवार मानकर सभी जगह घुमने की इच्छा रखता हूं।

जादुगर को नौजवान की बातें सुनकर बहुत अच्छा लगा। उसने उस नौजवान को बताया की वह एक जादुगर है। उसके पास उड़ने वाला एक जादुई संदूक है। जिसे वह उसे देने की इच्छा रखता है ताकी वह उस संदूक में बैठ पूरी दुनिया आसानी से घुम सके।

बुढ़े व्यक्ति ने कहा पर तुम दूरी दुनियां घुमने के बाद उस संदूक को वापस करने मेरे पास आना होगा। वह नौजवान जादुगर की बातें सुनकर बहुत खुश हुआ। और वह उस जादूगर को बहुत धन्यवाद दिया। वह संदूक में बैठ गया। संदूक आकाश में उड़ने लगा और शीघ्र ही वह एक सुंदर शहर में जा पहुंचा।

शहर में उसे एक महल दिखाई दिया। महल में बड़ी-बड़ी खिड़कियां लगी थी। उसे एक खिड़की पर बहुत सुंदर राजकुमारी नजर आयी। नौजवान उस खिड़की के नजदीक गया तो राजकुमारी उस संदूक में बैठे नौजवान और उसकी संदूक से बहुत प्रभावीत हुई।

राजकुमारी ने हाथ हिलाकर उस नौजवान को अपने पास बुलाई और उससे उसकी उड़ने वाली संदूक के बारे में पूछा। नौजवान ने राजकुमारी को बताया की वह संदूक उसे एक जादूगर ने दिया है।

राजकुमारी ने नौजवान से कहा वह भी उस संदूक में बैठना चाहती है। नौजवान ने राजकुमारी को अपने साथ संदूक में बिठाकर उसे झीलों और पर्वतों की सैर करवाई।

राजकुमारी उसके बाद अपने महल वापस आ गयी। उस नौजवान को कहा तुम यही रूक जाओं मैं अपने माता-पिता को बोलकर तुम्हें काम दिलवा दूंगी।

नौजवान ने कहा माफी चाहता हूं। मैं पहले पूरी दूनियां घुमना चाहुंगा। उसके बाद यह संदूक जादूगर को वापस कर आपके शहर काम करने जरूर आउंगा। यह बोल दोनों ने एक दूसरे को अलविदा किया और नौजवान दूसरे शहर की ओर रवाना हुआ।
नौजवान इसी तरह पूरी दूनिया घुमकर जब वापस जादुगर के पास पहुंचा तो जादुगर उस नौजवान को दूबारा देख कर बहुत खुश हुआ।

जादुगर ने कहा मैं तुम्हें अपनी जादुई विद्या तुम्हें देना चाहता हूं। नौजवान भी विद्या सिखने को राजी हो गया। धीरे-धीरे वह सारी जादूई ज्ञान सीख गया। उसके बाद एक दिन वह बुढ़े जादुगर की मोत हो गई।

नौजवान फिर से अकेला हो गया। उसने सोचा क्यों ना बाबा को जिंदा रखने के लिए उनके सिखाए जादू से मैं लोगों का मनोरंजन करूँ? नौजवान शहर-शहर घुमकर वह जादू दिखाने लगा। इस प्रकार वह भी अपना भी अपना सपना पूरा करता रहा और अपने साथ उस जादूगर का भी सपना पूरा हो गया।

इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है। अगर आप किसी की मदद करने की इच्छा रखते हो तो आपको भी कोई ना कोई मदद करने वाला जरूर मिल जाता है। जो आपकी पूरी दूनियां ही बदल देता है।

मुर्ख की सोच।

एक गांव में एक मूर्तिकार रहता था। वह सुन्दर-सुन्दर मूर्तिया गढ़ा करता था। उसकी प्रसंसा लोग दूर-दूर तक करते थे और उससे मूर्ति बनाने के लिए दूसरे शहर एवम् गांवों से लोग मूर्ति बनवाया करते थे।

एक बार उसने एक देवी की बहुत ही सुन्दर मूर्ती गढ़ी। वह मूर्ति उसे दूसरे गांव में अपने ग्राहक के पास पहुंचानी थी, इसलिए उसने अपने प्रिय मित्र धोबी से उसका गधा एक दिन के लिए मांगा लिया और मूर्ति को उस गधे की पीठ पर लादकर चल दिया।

मूर्ति इतनी सुन्दर और सजीव लग रही थी कि रास्ते में जो भी व्यक्ति उस मूर्ति को देखता, वही रूक जाता और श्रद्धा से देवी की मूर्ति को नमस्कार करता। पूरे रास्ते यही सब होता रहा।

यह देखकर उस मूर्ख गधे ने सोचा कि लोग उसे ही हाथ जोड़ रहे हैं। जैसे ही उसके मन में यह बात आई, वह घमंड से अकड़ गया और सड़क के बीच खड़ा होकर जोर-जोर से रेंकने लगा।

मूर्तिकार ने गधे को पुचकार कर चुप करने की बहुत कोशिश की और उसे समझाया कि भई ये लोग तुझे नमस्कार नहीं कर रहे है। ये लोग उस देवी को नमस्कार कर रहे है जो तुम्हारे पीठ पर सवार है।

मगर गधा को कौन समझाता। गधा तो गधा था। अगर सीधी-सादी बात बिना पीटे उसकी समझ में आ जाए तो उसे गधा ही कौन कहे।
वह अकड़ खड़ा रेंकता रहा। अतं में उस मूर्तिकार ने जब डंडे से उसकी पीटाई की तो मार खाने के बाद गधा का सारा घंमड उतर गया और मार खाने के बाद उसे पता चला मैं गधा हूं। बस पीटाई खाकर जैसे ही होश उसे आया, वह चुपचाप वहा से अपने रास्ते चल दिया।

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