Chidiya ki Kahani Bacchon ke Liye: एक दिन की बात है। एक जंगल में पंछियों का एक झुंड पेड़ पर खेल रही थी। उस झुंड में एक सबसे छोटी पंछी थी । वह बहुत ही प्यारी और सबसे तेज थी। उसका नाम बुलबुल था।
सभी चिडियां उसका ख्याल रखती और उसे कभी अकेला नहीं छोड़ती थी। बुलबुल जब अपने दोस्तों के साथ खेल रही थी । तो उसे एक पेड़ की डाल पर एक मोतीयों का हार मीला।
हार बहुत ही सुन्दर और चमक रही थी। बुलबुल को रहा नहीं गया उसने अपने गले में उस हार को डाल लिया। उसके साथी बुलबुल को हार मिलने पर बधाई देने लगें और सबने बोला की उस पर यह हार जच रही है।
बुलबुल तुरंत अपनी मां के पास गई उसे यह हार दिखाई उसकी मां ने बुलबुल से काफी पुछताछ करने लगी की उसको यह हार कहां से मिला है।
बुलबुल मां से नाराज होकर वापस अकेले ही जंगल में चली गई और एक पेड़ की डाल पर जा बैठ एक पेड़ की डाल पर जा बैठी, बुलबल सोचने लगी सभी ने मेरी तारीफ की बस मां को छोड़कर उसे तो बस हार की पड़ी थी। एक बार भी मां ने नहीं बोला की यह हार मुझ पर कैसी लग रही है।
इतने में कुछ सीपाही वहां आए और बुलबुल पर जाल डालकर उसे पकड़ कर अपने साथ ले जाने लगे।
इधर बुलबुल की मां उसे ढुढ़ रही थी और बुलबुल उसे कहीं नहीं मिल रही थी। वह परेशान थी की आखीर बुलबुल कहां चली गई।
सिपाही जब बुलबुल को अपने साथ ले जा रहे थे तो एक पंछी ने देख लिया। बुलबुल को सिपाहीयों से बचाने के कारण उस र्निदोष पंछी की हत्या सिपाहियों ने कर दी।
यह देख कर बुलबुल डर गयी और चुपचाप सिपाहियों के साथ चली गयी। सिपाही बुलबुल को राजा के दरवार में ले गए। बुलबुल वहां अपने को अकेला पा कर धबरा रही थी। बुलबुल को समझ में नहीं आ रहा था की उसे यूं दरबार में क्यूं लाया गया है।
तभी एक सिपाही ने बोला हुजूर मैंने रानी का हार चोरी करने वाली इस पंछी को पकड़ लिया है। राजा ने बोला तुम्हें कैसे मालूम की ये पंछी ही चोर है।
सिपाही ने बताया की चोर को ढुढ़ते-ढुढ़ते वह सभी जंगल में पहुंच गए थे तभी एक पेड़ पर इस पंछी के गले मैं रानी साहिबा का हार देखा तो हमने इस पर जाल डालकर पकड़ आपके सामने पेश किया है।
राजा गुस्से में पंछी से बोले तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुमने मेरी रानी के गले का हार चोरी कर तुम उनका हार पहन कर घुम रही हो।
बुलबुल बोली राजा साहब मैं निर्दोष हूँ सिपाहियों से जरूर कोई गलती हुई है। मैं चोर नहीं हूं।
राजा ने बोला गलती क्या गलती हुई है। क्या तुम हार पहन कर जंगल में घुम नहीं रही थी।
बुलबुल ने बोला मैं घुम तो रही थी पर रानी का हार मुझे एक पेड़ की डाल पर मिला था मैंने कोई चोरी नहीं की मैं निर्दोष हूँ ।
राजा ने पंछी को तुरंत ही प्राण दंड का हुकुम दे दिया। बुलबुल ने सोचा सच बोलने से कोई मेरे पर यकिन नहीं कर रहा एक बार झुठ ही बोल कर देखती हूं क्या मालूम मेरी जान भी बच जाए।
बुलबुल ने राजा को बोला राजा साहब मैं सच बोल रही हूं की हार मैंने नहीं चुराया पर मैं यह बात जरूर जानती हूं की हार किस ने चुराया और वह व्यक्ति अभी यहां दरबार मैं मौजूद भी है। और अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से मुझे घुर भी रहा है।
राजा ने बुलबुल से पूछा कौन हैं और तुम्हारे पास क्या सबूत है की चोरी उसने किया है।
बुलबुल बोली वह व्यक्ति राजमहल से हार चोरी कर छूपा रहा था तो मैंने उसके सर पर अपनी एक पंख गिरा दिया है। और वह पंख अभी भी उसके सर पर ही हैं।
बुलबुल ने जोर से बोला देखों-देखों उसके सर पर पंख हैं इतना कहते ही एक सिपाही राजा के दरवार से भागने लगा।
सब ने उस सिपाही को पकड़ लिया और देखा तो उसके सर पर कोई पंख नहीं था। राजा ने फिर उस बुलबुल को कहां मैं समझ गया की चोरी इस सिपाही ने ही किया तुमने अपनी बुद्धी से अपनी जान और असली चोर को भी पकड़ाया है। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हुआ। राजा ने फिर बुलबुल को छोड़ दिया और असली चोर को सजा दी गई।
बुलबुल को अब मां की बात याद आ रहीं थी । मां इतना क्यूं पुछ रही थी। कहीं मैं किसी मुसीबत मैं ना पड़ जाऊं।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं । की मां हमेशा बच्चों के लिए उसकी भलाई ही सोचती है। पर बच्चें जब तक किसी मुसीबत में ना पड़े। अपनी मां का प्यार नहीं समझ पाते।
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