Birbal ki Samajhdari | बीरबल की समझदारी की हिंदी कहानी

Birbal ki Samajhdari: उदयपुर के राजा भान सिंह ने, बीरबल की काफी प्रसन्नसा सुन रखी थी। एक दिन राजा भान सिंह ने अपने मंत्री से कहा, मुझे इस बीरबल से मिलना है। मैंने इसकी इतनी प्रसन्नसा सुन ली है । मेरी इन्हें देखने की इच्छा है । क्या वह सचमुच दिमाग से इतना तेज और चतुर है।

मंत्री ने राजा को बोला पर वह बीरबल को यहां नहीं बुला सकते क्यूं की बादशाह अकबर का एक दम खास और भरोसे वाला व्यक्ति हैं उसे उदयपुर मैं नहीं बुलाया जा सकता।

राजा ने कहां की कोई बात नहीं जब मेरे मन मैं बीरबल को देखने की इच्छा है। तो हम खुद उनसे मिलने चले जाएगें। क्या आप उन्हें अपने राज्य में संदेश भेज कर यहां मिलने के लिए बुलवा सकते हैं ?

मंत्री ने कहां क्षमा राजन पर आप भी उस राज्य में यूं नहीं जा सकते। राजा ने बोला मैं राजा बन कर नहीं जा सकता पर प्रजा बन कर तो कहीं भी जा सकता हूं ना ऐसे भी काफी वक्त से मैं अपने प्रजा के बीच भी नहीं गया हूँ । इसी कारण मैं अपना दोनों काम भी निपटा लूंगा।

मंत्री ने राजा को बहुत समझाया पर राजा भान सिंह नहीं माने और वह आज रात को ही अपने राज महल से बाहर जाने की इच्छा व्यक्त किए।
मंत्री को भी राजा की आज्ञा का पालन करनी पड़ा, राजा ने मंत्री को बोला वह अपने महल से बाहर जा रहे हैं यह बात किसी को भी मालूम ना चले और राज्य की जिम्मेवारी मंत्री पर छोड़ कर राजा अपने महले से बाहर चले गए।

मंत्री ने महल के पीछे एक घोड़ा खड़ा कर रखा था। राजा एक साधारण व्यापारी का भेष बदल कर उस घोड़े पर बैठ रात्री में अकेले ही वहां से निकल गए।

रात भर सफर तय करने के बाद सुबह उनकी नजर रास्ते में गिरे एक व्यक्ति पर पड़ी। उसे काफी चोट लगी हुई थी। राजा भान सींह अपने घोड़े से नीचे उतर कर उस व्यक्ति को उठाया और पूछा वह कौन हैं और उसे कहां जाना है?

उस व्यक्ति ने बताया की वह एक व्यापारी है और रात में कुछ बदमाशों ने उसे रास्ते में रोक कर उसका घोड़ा और सारे पैसे लूट लिया है। उसे मारा भी उसके बाद उसे वहीं छोड़कर चले गए।

राजा भान सिंह ने उसे कहा मैं तो यही बाजार में आया हूँ। मैं तुम्हें बाजार तक ले जा सकता हूँ क्योंकि मुझे तो बादशाह अकबर के दरवार जाना है। उस व्यक्ति ने कहा कोई बात नहीं आप मुझे वहा तक ले चलो। मैं आगे कुछ ना कुछ इंतजाम कर लूंगा।

राजा भान सिंह ने उस राहगीर को अपने साथ घोड़े पर बैठा लिया और बाजार के रास्ते चल दिए। जैसे ही बाजार आया तो राजा भान सिंह ने उस राहगीर को घोड़े से नीचे उतरने को बोला तो वह घोड़े से नीचे उतरने से मना कर दिया।

राजा भान सिंह को बोला कि मैं अपने घोड़े से नीचे क्यों उतरूँ? राजा भान सिंह उस व्यक्ति की बात सुनकर बहुत हैरान हुए।

राजा ने उस व्यक्ति से पहले तो अनुरोध किया। उसके बाद नाराज हो गए और बोले आज के बाद वह किसी भी व्यक्ति पर कभी भी विश्वास नहीं करेगें। दोनों के बीच काफी बहस होने लगी। उसके बाद उन दोनों की बाते बाजार के लोग सुनने लगे तो धीरे-धीरे भीड़ इक्ठा हो गई।

उन दोनों मैं से कोई भी उस घोड़े को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ। कुछ देर के बाद वहां राजा के कुछ सिपाही आए और दोनों को घोड़े के साथ बादशाह अकबर के दरवार में ले गए। वहां दरवार में उस वक्त बीरबल भी उपस्थित थे।

सिपाहियों ने उस दोनों की बातें बताई की वह किस प्रकार बाजार मैं एक दूसरे से बहस कर रहे थे।

सिपाहियों की बात सुनने के बाद बादशाह अकबर ने बीरबल की ओर देखा? बीरबल ने सिपाही को घोड़े को अस्तबल में ले जाने को कहा।

उसके बाद एक-एक कर बीरबल विस्तार से उन दोनों की बातें सुनने लगें। जब उन दोनों की बातें खत्म हो गई तो बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा बताओं बीरबल घोड़ा इन दोनों में से किसका है?

बीरबल ने मुस्कुराते हुए बादशाह अकबर को कहा महाराज ये बताने का नहीं बल्कि आपको मेरे साथ चल कर खुद देखना चाहिए।

उसके बाद बीरबल उन दोनों को लेकर अस्तबल चले गए उनके साथ बादशाह अकबर भी थे। अस्तबल पहुंचने के बाद बीरबल ने उन दोनों का कहा कि आप अन्दर जाओ और अपना घोड़ा खोलकर ले आओ।

राहगीर बड़ी दुविधा में था पर राजा भान सिंह बीरबल की समझदारी को भांप चुके थे।

राहगीर ने तुरंत बोला पहले मैं जायूँगा। अपना घोड़ा लेने बादशाह अकबर ने उसे अनुमति दे दी। राहगीर अस्तबल के अन्दर जाके देखा तो वहां हजारों घोड़े बंधे हुए थे। वह गया और थोड़ी देर बाद खाली हाथ वापस आ गया। जब बीरबल ने पूछा की आप बिना घोड़े के वापस क्यूं आ गए?

तो उसने जवाब दिया मैं इतने सारे घोड़े में अपना घोड़ा नहीं ढूंढ पाया। वहां उपस्थित सभी लोग उसकी बात सुनकर कर हंस पड़े।

उसके बाद राजा भान सिंह की बारी आई। राजा भान सिंह अस्तबल के अंदर गए और अपना घोड़ा लेकर तुरंत वापस आ गए।

उसके बाद बीरबल ने उस राहगीर को सिपाहियों द्वारा गिरफ्तार करवा दिया और उससे बोला की तुम झूठे हो। अपना सामान या अपना कोई भी जीव जन्तु कितने भी भीड़ में हो उसे हम आसानी से पहचान लेते हैं।

राजा भान सिंह ने रास्ते में तुम्हें गिरा हुआ देख कर तुम्हारी मदद की और तुमने उस ऐहसान के बदले उनको इतना परेशान किया। उसकी सजा तो तुम्हें जरूर मिलनी चाहिए।

राजा भान सिंह अपना नाम बीरबल से सुन कर चैंक गए और उन्होंने बीरबल से पूछा कि तुम्हें मेरे बारे में कैसे मालूम चला? तो बीरबल ने उन्हें उत्तर दिया मैं आपके शाही घोड़े की वजह से पहले ही जान चुका था कि आप कोई साधारण व्यापारी नहीं हैं। आपके बारे में पता लगाने मैं मुझे थोड़ा वक्त लग गया। उसके लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ।

राजा भान सिंह ने बीरबल को कहा कि मैं आपकी समझदारी की चर्चा इतनी सुन रखी थी कि मैं यहां आपसे मिलने चला आया। जितना आपके बारे में सुना था। यहां आकर यकिन हो गया कि आप सचमुच काबिले तारीफ है।

बादशाह अकबर ने राजा भीम सिंह को अपने साथ महल ले गए और उनका स्वागत और सतकार किया गया। उसके बाद राजा भीम सिंह अपने राज्य के लिए वहां से प्रस्थान किये।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जल्दी किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए नहीं तो आप भी मुसीबत में आ सकते हैं।

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