Best Hindi story for child class 2 with moral | बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ हिंदी कहानी

अगर आपके घर में छोटा बच्चा हैं. जो कि स्कूल में पढ़ता है तो उसको शिक्षाप्रद कहानियाँ काफी पसंद होगी। हमारी भी कोशिश होती है कि हम आपके लिए तथा बच्चों लिए छोटी-छोटी कहानियाँ प्रकाशित करें। जिससे उनको कुछ नई सीख मिले। आज इसी क्रम में हम आपके वर्ग 2 बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ हिंदी कहानी (Best Hindi story for child class 2 with moral) लेकर आये हैं।

Hindi story for child | बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ हिंदी कहानी

किसी पर अंधविश्वास मत करो | Very short story in hindi for class 2 child

एक समय की बात है। एक व्यापारी अपने ऊँट पर बैठ कहीं जा रहा था। व्यापारी जब जंगल से गुजर रहा था। तभी रास्ते में उसके ऊँट की तबियत बिगड़ गई। उसने ऊँट को जंगल में छोड़ दिया। चूंकि, ऊँट बीमार था और व्यापारी ने खुद अपनी यात्रा जारी रखी।

ऊँट को जंगल में जो कुछ भी मिला। उसने खा लिया और ऊँट घीरे-धीरे ठीक होने लगा। वह उस जंगल में बहुत खुश था।
शेर, लोमड़ी और कौआ आदि भी उसी जंगल में एकता के साथ रह रहे थे।

उन्होंने जब ऊँट को जंगल में देखा तो उससे मिलने आये। ऊँट ने अपनी आपबीती बताई, कि वो जंगल में कैसे आया और इस तरह से चारों अच्छे दोस्त बन गए।

एक दिन, जब शेर ने एक हाथी का शिकार किया, तो बहुत बुरी तरह से घायल हो गया। इसलिए, वह अपनी मांद के अंदर ही रहा और बाहर नहीं आ सका।

इसलिए, शेर शिकार करने बाहर नहीं जा सकता था। दूसरे जानवर शिकार नहीं कर सकते थे, और वे सभी भूखे रहने लगे।
शेर ने लोमड़ी, कौआ और ऊंट को बुलाया।

और उन से कहा मुझे बहुत भूख लगी है, “इस दिशा में जाओ और मुझे कुछ खाने को दो”। आप दूसरी दिशा में जाओ, आप विपरीत दिशा में जाते हैं, और कुछ मिलता है तो मेरे लिए लेकर आओं नही तो मै तुम्हें ही अपना शिकार बनायूँगा”।

वे तीनों फिर से एक साथ मिले, और एक निर्णय लिया। लोमड़ी, शेर के सामने खड़े हो गया। राजा शेर, मैंने हर जगह खाना खोजा, लेकिन खाना नहीं मिला, अपनी भूख को पूरा करने के लिए मुझे खालों।

मैं खुद को भोजन के रूप में पेश करता हूं और आप मुझे खा सकते हैं। नहीं मेरे भगवान, कौवा बोला में तो बहुत छोटा है पर मैं तुम्हारी भूख को तृप्त कर सकूंगा, तुम मुझे मारकर खा सकते हो।

तब ऊँट ने बोला नहीं, मैं केवल एक ही हूं, जो न केवल आपकी भूख को संतुष्ट कर सकता है।

लेकिन दूसरों की भूख भी पूरा कर सकता हूँ। इसलिए, तुम मुझे मार डालो और खा जाओ।

शेर और लोमड़ी तुरंत उस पर चढ़ गए और ऊँट को मार डाला।

यदि आप दूसरों पर आसानी से अंधविश्वास करते हैं तो आपको स्वाभाविक रूप से, कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

गधे की परछाई | New Moral Stories in Hindi

एक दिन व्यापारी ने बाजार से कुछ सामान खरीदा। सामान बहुत भारी होने के कारण व्यापारी ने सोचा क्यों ना एक गधा भी किराए पर ले लूँ और कुछ सामान और खरीद लू ताकि मुझे कुछ समय तक बाजार आना ना पड़े।

जिसके बाद वह व्यापारी एक दूकान पर पहुँचा और गधे को किराये पर लेने के लिए मोलभाव करने लगा। गधे का मालिक को भी उसी रास्ते जाना था। वो भी  मन ही मन सोचा फिर क्यू ना कुछ पैसे भी कमा लिया जाए। गधे के मालिक ने कहां ठिक है तो अभी चलों नही तो पैसे ज्यादा लगेगें। मुझे उघर से वापस भी आना है। गर्मियों के दिन थे व्यापारीऔर गधे का मालिक दोनों चलते-चलते थक गए थे।

वे एक जगह बैठकर आराम करने लगे। गधे की परछाई देखकर व्यापारी उसमें बैठने लगा। अचानक गधे का मालिक चीखा,”हटो यहाँ से। मैंने तुम्हें गधा किराए पर दिया है. उसकी परछाई नहीं। परछाई पर मेरा हक है।

इस बात को लेकर दोनों में बहस छिड़ गई। उन्हें लड़ते देखकर गधे ने सोचा, ‘सुनहरा मौका है, दोनों लड़ाई में उलझे हैं और किसी का ध्यान मेरी ओर नहीं है। यहां से भाग चलता हूँ।’ गधा चुपचाप वहाँ से भाग निकला।

मेंढक और साँप कि दोस्ती | Hindi story with props for class 2

एक कुएँ में बहुत सारे मेंढक साथ-साथ रहते थे। एक बार दो मेंढकों में जम कर लड़ाई होने लगी। शेष मेंढक दोनों में से किसी-न-किसी का पक्ष लेने लगे और आपस में लड़ने लगे। इस प्रकार कुएँ में मेंढकों के दो समूह बन गए। उनकी लड़ाई आए दिन बढ़ती चली गई।

एक दिन मेंढकों का एक समूह ने कुछ सोचा और एक साँप के पास सहायता के लिए चला गया। मेंढक का मुखिया साँप से बोला, “हम एक कुएँ में रहते हैं। वहाँ पर रहने वाले कुछ मेंढक हमारे दुश्मन हैं।

हम तुमसे विनती करने आए हैं कि तुम चलकर हमारे कुएँ में रहो और उन्हें मारकर खा जाओ। इस प्रकार तुम्हें आसानी से भोजन प्राप्त हो जाएगा और हमें भी अपने दुश्मनों से छुटकारा मिल जाएगा।”

यह जानकर साँप उनके साथ कुएँ में रहने के लिए खुशी-खुशी चल दिया। अब साँप ने दुश्मन मेंढकों को खाना शुरू कर दिया। जल्दी ही वह सारे दुश्मन मेंढकों को खा गया। तब दूसरे समूह के सरदार ने साँप से कुआँ छोड़कर जाने को कहा।

लेकिन ने उसकी बात मानने से इंकार कर दिया। अब वह मुफ्त के भोजन का आदी जो हो चुका था। इसलिए वह कुएँ में ही रहा और धीरे-धीरे सारे मेंढकों को मारकर खा गया। इस प्रकार, व्यर्थ की लड़ाई में सभी मेंढक अपनी जान गंवा बैठे।

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