तेनालीराम की कहानियाँ | Tenaliram ki kahaniya in hindi | तेनालीराम स्टोरी इन हिंदी

तेनालीराम की कहानियाँ  (Tenaliram ki kahaniya)  – तेनालीराम हमेशा अपनी बुद्धिमता से सबका मन जीतने के लिए जाने जाते थे। राज्य पर आई किसी भी समस्या को सुलझाने के लिए वह अपना दिमाग तुरंत लगाया करते थे। जिनकी कहानियां पढ़ने के बाद आपको काफी कुछ सिखने को मिलेगा।

तेनालीराम की कहानियाँ

आज हम आपको तेनालीराम की बुद्धिमानी की हिंदी कहानियाँ की शृंखला में तेनालीराम स्टोरी इन हिंदी शेयर कर रहें हैं। जिसमें आपको अलग-अलग सर्वश्रेष्ठ कहानियां पढ़ने को मिलेगी। जो कि निम्न प्रकार से है-

चंदू की पहेली

चंदू नामक एक व्यक्ति धनी जमींदार था। वह तेनाली राम का पक्का मित्र भी था। वह उम्मतुर नाम के एक गांव में रहता था। वह कुछ ही दिनों का मेहमान था। उसके तीन बेटे थे। एक दिन उसने अपने तीनों पुत्रों को अपने पास बुलाया और कहा, मेरे मरने के बाद मेरे पलंग के नीचे से जमीन खोद कर देखना।

तीनों पुत्रों ने चंदू की मौत के बाद ऐसा ही किया। उन्होंने पलंग के नीचे खुदाई करनी शुरू कर दी। खुदाई के दौरान उन्हें जमीन में दबे हुए तीन कटोरे मिले जो कि एक के ऊपर एक करके रखे हुए थे। पहले कटोरे में मिट्टी भरी हुई थी, दूसरे में सूखा हुआ गाय का गोबर था और तीसरे में तिनके रखे हए थे। तीनों कटोरों के नीचे उन्हें दस सोने की मुद्राएं भी रखी हुई मिली, जिन्हें वराह (सिक्के) कहा जाता था। तीनों पुत्रों ने उन्हें ध्यान से देखा और अपना दिमाग लगाया लेकिन उनकी समझ में कुछ नहीं आया।

चलो तेनाली रमन चाचा जी के पास चलते हैं। वे समझदार है और बुद्धिमान भी हैं वे हमें इन सबका सही मतलब बतायेंगे। एक भाई ने सलाह दी।

यही ठीक रहेगा। आओ जल्दी चलें। दूसरे भाईयों ने भी हां कर दी और वे तेनाली राम के पास चल दिए। उन्होंने तेनाली राम से कहा चाचाजी आप इस बारे में क्या कहते हैं? क्या हमारे पिताजी ने इस बारे में कभी आपसे कोई बात की है?

तेनालीराम ने जवाब दिया, नहीं तुम्हारे पिता ने कभी भी इस बारे में मुझसे बात नहीं की। मैं तुम्हारे पिता को कई सालों से जानता हूं। वे शुरू से ही पहेलियां बुझाने के शौकीन रहे हैं। यह भी एक पहेली है मुझे सोचने के लिए थोड़ा समय दो।

तीनों लड़के उनके पास ही बैठ गए और तेनाली कुछ सोचने लगे। मुझे पता चल गया। आओ मै तुम्हें बताता हूं कि इस पहेली का क्या हल है? तेनाली राम ने कहा।

लड़के उत्सुकता से आगे आए और बोले क्या हल है चाचा जी? जल्दी से बताएं। तेनाली ने जवाब दिया तीनों कटोरों को ध्यान से देखा। से तीनों तुम्हारे नाम से हैं। सबसे ऊपर वाला कटोरा सबसे बड़ा है जिसमें कि मिट्टी भरी हुई है इसका मतलब है कि- तुम्हारे पिता के सारे खेत बड़े वाले पुत्र के हिस्से में आए हैं। दूसरा कटोरा, जिसमें कि गाय का सूख हुआ गोबर भरा है, वह मझंले पुत्र के लिए है।

इसका अर्थ है- कि सारे पशु और जानवर उसके हिस्से में आए है और तीसरा कटोरा छोटे पुत्र के लिए है जिसमें तिनके रखे हुए हैं। इन तिनकों को ध्यान से देखो। ये सुनहरे रंग के हैं। इसका अर्थ है कि छोटे पुत्र के हिस्से में सारा सोना आया है।

लेकिन चाचा जी पहेली अभी भी पूरी तरह से सुलझी नही हैं। ये दस सोने के बराह (सिक्के), ये किसके हिस्से में आए हैं? एक बेटे ने पूछा। अच्छा ये सोने के सिक्के, यह मेरा मेहनताना हैं तुम्हारे पिता कभी भी कोई चीज मुफ्त में नहीं लेते थे। वे दस सोने की मुद्राएं मेरे मेहनताने के रूप में छोड़ गए हैं। तेनाली राम बोले।

तीनों पुत्रों को अपने पिता की पहेली का उत्तर मिल चुका था। उन्होंने वे सोने की मुद्राएं तेनाली राम को दी और वहां से विदा ली।

महाराज की खांसी

एक बार महाराज कृष्णदेव की तबीयत खराब हो गई। उन्हें बुरी तरह से जुकाम हो गया। राज वैद्य ने उन्हें अचार, खट्टी और मसालेदार चीजें व दही खाने से मना कर दिया। लेकिन महाराज तो महाराज थे। वे भला किसकी मानने वाले थे। अतः उन्होंने वैद्य की परवाह किए बिना सब कुछ खाना जारी रखा।

सभी वैद्य और दरबार के मंत्री महाराज की इस आदत से परेशान हो गये। उन्होंने मिल कर तेनालीराम से सलाह लेनी चाही। क्योंकि वे जानते थे कि केवल वही एक व्यक्ति हैं, जो महाराज को समझा सकते हैं। वे मिल कर तेनालीराम के पास गए और उन्हें इस समस्या का हल निकालने को कहा, क्योंकि महाराज की बदपरहेजी के कारण उनकी खांसी बढ़ती जा रही थी। तेनालीराम ने इसका भी उपाय सोच लिया।

अगले ही दिन वे महाराज के पास गए और उन्हें एक दवा देते हुए बोले, महाराज एक बहुत ही पहुंचे हुए हकीम ने यह दवा आपके लिए भेजी है। आप इसे खा लीजिए और इसके साथ आप जो चाहे खा सकते हैं। महाराज चौंकते हुए बोले, क्या कहा?
मैं सब कुछ खा सकता हूं। अचार, खट्टी चटनी और दही भी खा सकता हूं?

जी महाराज तेनाली राम ने उत्तर दिया। एक सप्ताह बाद तेनालीराम दोबारा महाराज से मिलने गए। उन्होंने महाराज से उनकी तबीयत के बारे में पूछा। महाराज ने जवाब दिया। मेरी तबीयत तो पहले से भी ज्यादा खराब है मेरा जुकाम बिल्कुल भी ठीक नहीं हो रहा। खांसी की हालत भी ज्यों की ज्यों है गले में लगातार खराब बनी रहती है।

तेनालीराम ने जवाब दिया, महाराज आप वही दवा जारी रखें। इसे खाने से आपको तीन फायदे होंगे।
क्या कहा? तीन फायदे? वह कैसे? महाराज ने चौंकते हुए पूछा। एक राजमहल में कोई चोर नहीं आएगा। दूसरे, आपको कोई कुत्ता तंग नहीं करेगा और तीसरे, आपको बूढ़ा होने का भी कोई डर नहीं रहेगा। तेनालीराम ने मुस्कुराते हुए कहा।

मैं कुछ समझा नहीं। मेरे जुकाम से चोर, कुत्ते और बुढ़ापे का क्या संबंध हैं? महाराज सोच में पड़ गये। तेनालीराम ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, देखिए महाराज यदि आप खट्टी चीजें खाना रखना जारी रखेंगे तो आप सारा दिन और सारी रात खांसते रहेंगे और आप की खांसने से कोई भी चोर महल में घुसने की हिम्मत नहीं कर सकता और आप हमेशा जागते रहेंगे।
और कुत्ते का इस बात से क्या देना देना?

तेनाली राम बोले जब आप लगातार खांसते रहने से कमजोर हो जायेंगे और खड़े नहीं हो पाएंगे तो आपको सहारे के लिए लाठी की जरूरत पड़ेगी। लाठी के डर से कुत्ते आप से दूर रहेंगे।

अब तीसरी बात यानी बुढ़ापे के बारे में क्या कहते हो?

अरे हां, जब आप हमेशा यूंही बीमार रहेंगे तो बूढ़ा होने की नौबत ही नहीं आएगी और आप जवानी में ही मर जाएंगे, अतः आपको तो बुढ़ापे का कोई डर नहीं रहेगा। तेनालीराम ने खुश होते हुए महाराज से कहा।

तेनालीराम ने महाराज के सामने सच्चाई की जो तस्वीर पेश की उसे देखकर डर गए। उन्होंने खट्टी चीजें व दही आदि खाना बंद कर दिया कुछ ही दिनों के बाद महाराज पुरी तरह से ठीक हो गए।

बिना बालों की हथेली

महाराज कृष्णदेव राय तेनाली राम का बहुत आदर करते थे। विकटकवि के पास हर बात का जवाब था और हर कठिन से कठिन समस्या का समाधान भी रहता था। वे हर मुश्किल को चुटकी में आसान कर देते। महाराज भी अक्सर नई-नई पहेलियां और प्रश्नों से तेनाली राम को सताने का उपाय ढूढ़ते रहते थे।

एक दिन महाराज ने भरे दरबार में तेनाली से हंसी-मजाक करना चाहते थे। महाराज ने तेनाली राम ने पूछा की आप बताईए, मेरी हथेली पर बाल क्यों नही उगते हैं?
तेनाली राम ने बोला अरे महाराज आप किस तरह की बात कर रहे हैं? आप की हथेली पर तो कभी बाल उग ही नहीं सकते। यह तो असंभव है।

तेनाली राम ने बोला आप तो एक दयालु और धैयवान राजा हैं। आप हमेशा आपे हाथों से गरीब और जरूरमंद लोगों को धन-दौलत और तरह-तरह के उपहार देते रहते हैं। आपके हाथ लोगों को हमेशा दान देने में व्यस्त रहते हैं इसलिए हथेलियों पर बाल उगने का सवाल ही नही होता।

महाराज ने बोला ठीक है तो तुम्हारे हथेलियों पर बाल क्यों नही उगते? तेनाली राम ने बहुत चरूराई से जवाब दिया महाराज में कई बार आपके हाथों उपहार और दान ले चूका है इसलिए मेरे हाथों पर भी बाल नही उगते हैं।

महाराज ने बात यही खत्म नही की उन्होंने बोला बाकी दरबारियों की हथेलियों में भी बाल क्यों नही है?

तेनालीराम ने बोला महाराज दरबार में उपस्थित लोग देखते है कि आप मुझे कितना उपकार और दान देते है जिसके कारण यह अन्दर ही अन्दर जलते है और जलन के कारण आपने दोनों हाथ को आपस में रगड़ते से इनके हाथोें में भी बाल नहीं उगते।

महाराज तेनालीराम की हाजिर जवाब के और चतुराई से बेहद प्रसन्न हुए और उनके दरबारी गुस्से के मारे अन्दर ही अन्दर सुलगते रहे और अपनी हथेलियों को आपस में रगड़ते रहे।

झूठा साधु

अधिकतर लोग अंधविश्वासी होते हैं वे बिना सोचे-समझे हर बात पर आसानी से विश्वास कर लेते हैं। इसी प्रकार एक दिन एक साधु जैसा दिखने वाला एक आदमी हाथ में छड़ी लिए विजयनगर आया।

साधु जैसा दिखने वाला व्यक्ति ने वहां के लोगों को कई जादुई करिश्मे दिखाए तथा कई प्रकार के मन्त्रों का भी उच्चारण कर उन्हें अपने विश्वास में ले लिया। लोग उससे बहुत प्रभावित होने लगे।

धीरे-धीरे वहां बहुत अधिक संख्याा में लोग उसके पास आने-जाने लगे। वहां के लोग कई प्रकार के भेट रूपये-पैसे उसके लिए लाने लगे। साधु के दिन भी मजे में गुजरने लगे। वह लोगों द्वारा लाए पैसे को इक्ठा करता और एक थैले में भर कर अपने सिर के नीचे रख कर सो जाता।

धीरे-धीरे उस साधु की प्रसन्नता पूरे शहर में फैल गई और तेनालीराम के कानों तक भी पहुंच गयी। उन्होंने भी सोचा की वह उस साधु के दर्शन के लिए जाएगें। एक दिन वह भी साधु से मिलने निकले पड़ें।

उन्होंने देखा साधु एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठा था। वह कभी अपनी आंखे बंद करता और हवा में अपनी दोनों होथों को हिलाता और लोगों की सम्स्या का सामाधान कर उन्हें उपाय बताता। लोग उसके पास अपनी समस्या लेकर आते और वह व्यक्ति उनकी समस्या का समाधान करता और बदले में लोग उसे पैसे और दान देते।

तेनाली राम भीड़ में जाकर साधु के इतने पास बैठ गये जहां से उनको साधु की सारी बातें साफ-साफ सुनाई दे रही थी। तेनालीराम ने यह महसूस किया कि साधु थोड़ी-थोड़ी देर बाद गिने-चुने मंत्र और श्लोक दोहरा रहा है और बारी-बारी से लोग को सुना रहा है।

उन्होंने सोचा- यह आदमी तो ढ़ोगी है बेचारे गांव वाले बेकार में इसके जा में फंस रहे हैं। मुझे ढ़ोगी की सच्चाई गांव वालों के सामने लानी होगी। इतना सोचते ही तेनाली राम ने बहुत तेजी से साुधु के दाढ़ी का एक बाल उखाड़ा और बोला मुझे तो स्वर्ग जाने का रास्ता मिल गया। देखों ! यह इस साधु की दाढ़ी का कीमती बाल है यह साधु कितना बुद्धिमान और ज्ञानी है जो कोई भी स्वर्ग जाना चाहता है, इसकी दाढ़ी का एक बाल अपने पास रख ले।

तेनालीराम की बात सुनते ही, भीड़ एकदम से बेकाबू होती हुई साधु की ओर दौड़ पड़ी उसकी दाढ़ी के बाल तोड़ने को। तेनालीराम ने कहा अरे भाई अगर दाढ़ी के एक बाल ना मिले तो सर के दो बाल उखाड़ लो आधे-आधे रास्ते चल कर स्वर्ग पहुंच जाओगे।

साधु पर भीड़ बाल तोड़ने को टुट पड़ी साधु उस भीड़ से अपनी जान बचाकर भागा। तेनाली साधु को भागते देख म नही मन बहुत खुश हुआ।

तेनाली ने सोचा था अगर वह एक-एक कर लोगों को समझाता तो लोग उसके पीछे मारने को दोड़ते मगर तेनाली राम ने अपनी बुद्धि का सही इस्तीमाल कर साधु को विजयनगर से भगा दिया और वहां के लागों को उस ढ़ोगी साधु से भी बचा लिया।

लड़कों का खेल

एक दिन तेनालीराम ने अपना घर बदला और नये घर में रहने चले गए। यह घर पुराने घर से बहुत अच्छा था। पर यहां परेशानी यह थी की यहां पड़ोसी के बच्चें शोर बहुत मचाते थे। इससे तेनाली राम को आराम करने में बहुत परेशानी होती थी।

एक दिन तेलानीराम ने इस समस्या का समाधान करने को सोचा। अगले दिन जैसे ही वह बच्चे उनके घर के सामने खेलने आए। तेनाली अपने घर से बाहर निकले और बच्चों को बोले नमस्ते में एक कवि हूं।

जब भी में तुम्हें यहां खेलते देखता हूं। मुझे मेरा बचपन याद आता है। तुम यहां इसी तरह खेलना मैं तुम लोगों को रोज चार-चार लड्डु दिया करूंगा।

बच्चें यह सुन कर बहुत खुश हुए और अपना खेल खत्म करने के बाद तेनालीराम का दरवाजा खट्खटाया तेनाली राम ने सभी बच्चों को चार-चार लड्डु दिये। बच्चें खुशी-खुशी वहां से अपने घर चले गए।

दूसरे दिन भी तेनाली राम ने सभी को लड्डु दिए। तीसरे दिन बच्चें खेल समाप्त कर लिए तो उन्होंने तेनाली राम का दरवाजा खट्खटाया। उस दिन तेनालीराम ने कहा मेरा मालिक ने मुझे अभी तक वेतन नही दिया है। मैं तुम्हें अभी लडडु नही दे पाउंगा। बच्चें बहुत नाराज हुए और पूछे कब तक तुम्हारा वेतन आएगा?

तेनालीराम ने कहा मालूम नही, एक सप्ताह या दो सप्ताह भी लग सकता है। बच्चों ने बोला हम तुम्हें फ्री में अपना खेल नही दिखायेंगे और बच्चों ने एक साथ बोला हम कल से यहां नहीं खेलेगें और ना ही तुम्हें तुम्हारी बचपन की कोई खेल याद दिलवायेंगे और तेनालीराम के यहां से चले गए।

तेनालीराम ने देखा अगले दिन कोई भी बच्चा उसके दरवाजे के पास खेलने नहीं आया और ना कोई शोर की आवाज दूर-दूर तक सन्नाटा था। तेनालीराम ने अपनी समझ से अपनी समस्या का समाधान कर लिया।

चावल का एक दाना

समय बीतता गया और तेनाली राम का विवाह हो गया। तेनाली राम का जीवन बहुत सुख से नहीं बीत रहा था। वे अधिक धन कमाना चाहते थे। ताकि वह अपने परिवार को सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं की व्यवस्था वह कर सकें।

उन्होंने महाराज कृष्णदेव राय और उनकी महान नगरी विजयनगर के बारे में बहुत सुन रखा था। महाराज के बारे में यह कहा जाता था कि बुद्धिमान और कुशल व्यक्तियों का बहुत सम्मान करते हैं। वे बहुत बड़े कला प्रेमी हैं। वे कलाकारों और शिल्पियों का बहुत सम्मान करते हैं। तेनाली राम ने भी सोचा कि क्यों न वे भी महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में जाएं, वे वहां जा कर अपनी किस्मत आजमाना चाहते थे जिससे उनकी जीविका का कोई हल निकल सके।

उन्होंने अपना सामान बांधा और विजयनगर के लिए रवाना हो गए। जब वे वहां पहुंचे तो उन्हें कुछ समय बाद दरबार में महाराज के सामने उपस्थित होने के लिए बुलाया गया। वे जैसे ही दरबार में दाखिल हुए तो उन्होंने महाराज को सादर प्रणाम किया और अपनी एक कविता सुनाने की अनुमति मांगी।

महाराज ने तेनाली राम को कविता सुनाने की आज्ञा देदी और तेनालीराम ने कविता पढ़नी शुरू की। उनकी कविता सुनकर महाराज बहुत प्रसन्न हुए। महाराज ने बोला तुम्हारी कविता बहुतसुंदर है। तुम अपने लिए क्या पुरस्कार चाहते हो?
तेनाली राम जानते थे कि महाराज के दरबार में अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर बार-बार नहीं मिलता। महाराज को अपनी बुद्धिमता और हाजिर जवाब से भी प्रभावित करना था।

दरबार में वहीं कालीन पर शतरंज की बहुत सुदंर बिसात बिछी हुई थी। जिस पर शानदार कलाकारी की गयी थी। तेनाली राम की आंखें उसी पर जा गड़ी। महाराज ने उन्हें शतरंज की बिसात को ताकते हुए देखा तो बोले अच्छा तो तुम्हें वह शतरंज पसंद हैं? तो ठीक है, तुम इसे ले जा सकते हो, महाराज बोले।

तेनाली ने तुरंत बोला नही महाराज मुझे यह नही चाहिए। आप मुझे शतरंज के एक चौकोर खाने के लिए चावल का कण दीजिए और इसके बाद दूसरे खाने के लिए दुगना और प्रत्येक वर्ग के लिए उससे दुगना देते जाए।

महाराज ने बोला सोना या चांदी के सिक्के के बदले तुम्हें चावल के दाने चाहिए?
जी महाराज मुझे यही चाहिए। तेनाली राम ने उत्तर दिया। ठीक है थोड़े से चावल मंगवाए जाए। उन्होने अपने एक दरवारी को आज्ञा दी।

दरबार में चावल मंगवाए गए और माप के हिसाब से उनकी गिनती शुरू की गई। पहले खाने में एक, दूसरे में दो तीसरे में चार और इस प्रकार यह सिलसिला सैकड़ों हजारों में फिर लाखों और अंत में करोड़ों की संख्या तक जा पहुंचा। सभी दरबारी अचंभित हो गए और महाराज भी हैरान हो कर देख रहे थे कि उनके चावल का गोदाम लगभग खाली होने को आ गया।

तेनाली राम ने मुस्कुराते हुए अपना सिर झुकाया और बोले महाराज मैं आपके शाही गोदाम की खाली नहीं करना चाहता। मैं केवल आपके दरबार और दरबारियों को यह दिखाना चाहता हूं कि छोटे-छोटे कदम किसी बड़े कारनामे को अंजाम देने के लिए कितने महत्वपूर्ण होते है।

महाराज तेनाली राम की चतुराई और बुद्धिमानी से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके और उनकी बहुत प्रशंसा की। उन्होंने तेनाली राम को दरबार में आठ रत्नों का स्थान भी प्राप्त किया।

मां काली का आशीर्वाद

तेनालीराम बहुत छोटे थे तभी उनके पीता जी चल बसे थे। तेनालीराम बचपन में कभी स्कूल नही गए। वे बचपन में बहुत शरारतें किया करते थे। उनकी मां अक्सर उनके इस स्वभाव के कारण परेशान रहती थी।

तेनाली राम के गांव में एक ज्ञानी संत आए। उन्हें तेनाली राम का चुलबुला स्वभाव बहुत प्रभावित किया। उन्होंने एक मंत्र सीखाया और कहा कि वे रोजाना काली मां की प्रार्थना किया करें। तेनाली राम पास के एक मंदिर गए और संत के कहे अनुसार मंत्र का एक लाख बार जाप किया।

मंत्र जाप पूरा होते ही, काली मां ने अपने सौ सिरों के साथ भयंकर रूप में उन्हें दर्शन दिए। काली मां को इस प्रकार अपने सामने देख, घबराने के बजाए जोर-जोर से हंसने लगे।

काली मां ने उनसे, उनके हंसने की वजह पूछा तो, वह बोले, मां मेरी एक नाक है और जब मुझे जुकाम होता है तो मुझे बहुत मुश्किल होती है। लेकिन आप के तो सौ नाक है और हाथ केवल दो। आपको कितनी मुश्किल होती होगी।

मां काली तेनाली राम की इस हंसमुख स्वभाव से बहुत प्रसन्न हुई और बोली तुम अपने इस चुलबुले स्वभाव के कारण लोगों का सदा मनोरंजन करोगेे।

मां काली के हाथों में दो कटोरे थे एक में धन और दूसरे में विद्या। काली मां ने तेनाली राम से पूछा बोलो तुम्हें मुझसे क्या वरदान चाहिए?

अब तेनाली राम सोचने लगा कि वह कौन सा वरदान चुनेें। जीवन में तो ज्ञान और धन दोनों जरूरी है।

केवल एक वरदान से तो बात नही बनेगी। फिर तेनाली राम ने बोला क्या मैं इनको लेने से पहले चख कर देख सकता हूं? बिना चखे मैं कैसे बता सकता हूं कि मुझे कौन सा कटोरा चाहिए।

काली मां ने कहां तुम ठीक कहते हो, लो चख लो, तेनाली राम ने दोनों कटोरे लिए और एक पल में ही चट कर दिया। उसके बाद तेनाली राम ने काली मां को कहा- मुझें माफ करना मां, मुझे जीने के लिए धन और विद्या दोनों की जरूरत थी। इसलिए मैंने दोनों को ले लिया है।

तेनाली राम की ओर काली मां देख उनकी चतुराई पर हंसने लगी। काली मां ने कहा तुम्हें वह सब कुछ मिलेगा जो तुम्हें चाहिए, लेकिन दोनों वरदान होने के कारण तुम्हारे पास मित्र और शत्रु भी अधिक होगेें। यह बोल मां काली गायब हो गयी।

आगे चल कर तेनाली राम कृष्णनगर के दरवार में एक हाजिर जवाब दरबारी के रूप में जाने गए। तेनाली राम अपने हाजिर जवाब और बुद्धिमत्ता के बल पर महाराज कृष्णदेव राय का प्रिय मंत्री बनने का सौभाग्य पाया।

बाबापुर की रामलीला

एक बार दशहरा पर नाटक मंडली विजयनगर नहीं पहुंच पाई, तो तेनालीराम ने क्या किया, आइए जानते हैं। तेनालीराम विजयनगर में महाराजा कृष्णदेव के राज्य दरवार में रहा करते थे। तेनालीराम महाराजा के बहुत प्रिय थे। वह राज्य में किसी भी समस्या का समाधान बहुत ही जल्दी किया करते थे। महाराज तेनालीराम की इसी खुबी के कारण उनसे प्रसन्न रहते थे।

विजयनगर में हर साल काशी से एक नाटक मंडली दशहरे से पहले आया करती थी। यह नाटक मंडली विजयनगर में रामलीला किया करती थी। नाटक मंडली विजयनगर में नगर वासियों का मनोरंजन किया करती थी। यह एक तरह से विजयनगर की संस्कृति थी और ऐसा हर साल हुआ करता था।

एक साल ऐसा हुआ जब काशी से दशहरे से पहले एक संदेश विजयनगर आया की नाटक मंडली के कई सदस्य बीमार पड़ गए है और उन्होंने कह दिया कि वो विजयनगर नहीं आ पाएंगे। यह सुनकर महाराज कृष्णदेव राय और सारी प्रजा बहुत उदास हो गई।

दशहरे को अब सिर्फ कुछ ही दिन बाकी थे। ऐसे में किसी और नाटक मंडली को बुलाकर रामलीला का आयोजन करवाना बहुत मुश्किल था। दरबार के मंत्रियों और राजगुरु ने आसपास के गांव की नाटक मंडली को बुलाने की कोशिश की, लेकिन किसी का भी आ पाना बहुत मुश्किल था। सबको निराश देख तेनालीराम ने कहा, “मैं एक नाटक मंडली को जानता हूं। मुझे यकीन है कि वो विजयनगर में रामलीला करने के लिए जरूर तैयार हो जाएंगे।”

तेनालीराम की यह बात सुनकर सब खुश हो गए। उसके साथ ही राजा ने तेनाली को मंडली बुलाने की जिम्मेदारी सौंप दी और तेनालीराम ने भी रामलीला की तैयारी करना शुरू कर दी। विजयनगर को नवरात्र के लिए सजाया जाने लगा। रामलीला मैदान की साफ-सफाई करवा कर वहां बड़ा-सा मंच बनवाया गया। उसी के साथ मैदान पर बड़ा-सा मेला भी लगवाया गया।

जब विजयनगर में रामलीला होने की खबर फैली गई तो सारी नगर की जनता रामलीला देखने के लिए उत्सुक हो गई। देखते-देखते रामलीला का दिन भी आ गया। नगर के सभी लोग रामलीला देखने के लिए मैदान में इकट्ठे होने लगे।

महाराज कृष्णदेव राय भी सभी मंत्रीगण और सभा के अन्य सदस्यों के साथ वहां मौजूद थे। सभी ने रामलीला का खूब मजा उठाया। जब नाटक खत्म हो गया, तो सभी ने उसकी बहुत तारीफ की। खासकर, नाटक मंडली में मौजूद बच्चों की कलाकारी सभी को बहुत पसंद आई थी। महाराज सभी से इतना खुश थे कि उन्होंने पूरी नाटक मंडली को महल में तभी खाना खाने का न्योता दे दिया।

जब पूरी मंडली महल आई, तो सभी ने महाराज, तेनालीराम और अन्य मंत्रीगण के साथ भोजन किया। इस दौरान महाराज ने तेनालीराम से पूछा कि उन्हें इतनी अच्छी मंडली कहां से मिली?

इस पर तेनालीराम ने उत्तर दिया, यह मंडली बाबापुर से आई है, महाराज। यहीं विजयनगर के पास ही है, महाराज।

तेनालीराम की यह बात सुनकर मंडली के सदस्य मुस्कुराने लगे। इस पर महाराज ने उनसे मुस्कुराने की वजह पूछी, तो मंडली का एक बच्चा बोला, “महाराज, हम विजयनगर के ही रहने वाले हैं। इस मंडली को तेनाली बाबा ने तैयार करवाया है और इसलिए हमारी मंडली का नाम बाबापुर की मंडली है।”

बच्चे की यह बात सुनकर महाराज सहित सभी लोग ठहाके लगाके हसंने लगे।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि ऐसी कोई समस्या नहीं है, जिसे दूर न किया जा सके। इसके लिए बुद्धिमानी से काम लेने की जरूरत होती है, जैसे इस कहानी में तेनालीराम ने किया।

तेनालीराम की कहानी मनपसंद मिठाई | तेनालीराम Short Stories in Hindi

तेनालीराम हमेशा से ही अपने नायाब तरीकों से जवाब देने के लिए जाने जाते थे। उनसे कोई भी सवाल पूछा जाए, तो वह हमेशा एक अलग अंदाज के साथ जवाब देते थे। चाहे वो सवाल क्यों न उनकी मनपसंद मिठाई का हो। इस कहानी में जानते हैं किस तरह से तेनालीराम ने अपनी मनपसंद मिठाई के बारे में महाराज कृष्णदेव राय को नाम बताई।

सर्दियों का मौसम था। एक दोपहर महाराज कृष्णदेव राय, राजपुरोहित और तेनालीराम महल के बागीचे में टहल रहे थे और धूप का आनंद ले रहे थे। महाराज बोले, “इस बार बहुत गजब की ठंड पड़ रही है। सालों बाद ऐसी ठंड नहीं पड़ी। ये मौसम तो भरपूर खाने और सेहत बनाने का है। क्यों राजपुरोहित जी, क्या कहते हैं?” राजपुरोहित ने जवाब दिया बिल्कुल सही कह रहे हैं महाराज आप। इस मौसम में मिठा खाना काफी लाभदायक होता है। जैसे-ढेर सारे सूखे मेवे, फल और मिठाइयां खाने का मजा ही अलग होता है”।

मिठाइयों का नाम सुनकर महाराज बोले, “यह तो बिल्कुल सही कह रहे हैं आप। वैसे ठंड में कौन-कौन सी मिठाइयां खाई जाती हैं?”

राजपुरोहित बोले, “महाराज सूखे मेवों की बनी ढेर सारी मिठाइयां जैसे काजू कतली, बर्फी, हलवा, गुलाब जामुन, ये हमारे शरीर को गर्म रखने में काफी मदद करती है ताकि हमें ठण्ड छू भी ना सकें। ऐसी और भी कई मिठाइयां हैं, जो हम ठंड में खा सकते हैं।”

यह सुनकर महाराज हंसने लगे और तेनालीराम की तरफ मुड़कर बोले, “आप बताइए तेनाली। आपको ठंड में कौन सी मिठाई पसंद है?”

इस पर तेनाली ने जवाब दिया, महाराज, राजपुरोहित जी, आप दोनों रात को मेरे साथ महल के बाहर चलिए मैं आपको अपनी मनपसंद मिठाई खिला दूंगा। “महाराज ने बोले“ आपको जो मिठाई पसंद है, हमें बताइए। हम महल में ही बनवा देंगे।

”तेनाली ने बोले” नहीं महाराज, वह मिठाई यहां किसी को बनानी नहीं आएगी। आपको मेरे साथ खाने के लिए बाहर ही चलना होगा।

”महाराज ने हंसकर कहा चलिए ठीक है।” आज रात को ही खाना खाने के बाद हम आपकी मनपसंद मीठाई खाने आपके साथ चलेंगें।

रात को खाना खाने के बाद महाराज और राजपुरोहित ने साधारण कपड़े पहने और चुपचाप महल से निकल कर तेनाली के साथ चल पड़े। गांव पार करके, खेतों में बहुत दूर तक चलने के बाद महाराज बोले, “हमें और कितना चलना पड़ेगा तेनाली? आज तो तुमने हमें थका दिया है।

“तेनाली ने उत्तर दिया” बस कुछ ही दूर और है महराज।

जब वो लोग खेतों के बीच पहुंचे तो उन्हें मिठाई की खुशबु आने लगी। महराज ने बोला लगता है हम आपकी मनपसंद जगह पहुंच गए, तो तेनाली ने मुरूकुराया और महाराज और राजपुरोहित को एक खाट पर बैठने को कहा और खुद वो मिठाई लेने चले गए। थोड़ी देर में वे अपने साथ तीन कटोरियों में गर्मा गर्म मिठाई ले आए। जैसे ही महाराज ने उस मिठाई को चखा उनके मुंह से वाह से अलावा और कुछ नहीं निकला। महाराज और राजपुरोहित एक बार में ही पूरी मिठाई चट कर गए।

इसके बाद दोंनो ने तेनाली से कहा, मजा आ गया! क्या थी यह मिठाई? हमने यह पहले कभी नहीं खाई है।”

महाराज की बात पर तेनालीराम मुस्कुराए और बोले, “महाराज ये गुड़ था। यहां आस-पास गन्नों का खेत है और किसान उसी से यहां रात को गुड़ बनाते हैं। मुझे यहां आकर गर्मागर्म गुड़ खाना बहुत पसंद है। मेरा मानना है कि गर्मागर्म गुड़ भी बेहतरीन मिठाई से कम नहीं होता है और गुड़ हमारे शरीर को अंदर से गर्म रखता है गुड़ खाने से कई फायदे भी है।”

महराज ने तेनाली राम की बातें सुनने के बाद उससे कहां मुझे तो यकिन ही नहीं हुआ की हम गुड़ खा रहे थे। इसी बात पर हमारे लिए एक कटोरी मिठाई और ले आइए।”

इसके बाद तीनों ने एक-एक कटोरी गुड़ और खाई और फिर महल को लौट गए।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है। हमें छोटी-छोटी चीजों में भी वो खुशियां मिल सकती है, जो कई पैसे खर्च करने पर भी नहीं मिलती सिर्फ फर्क हमारे सोचने का है। अगर हम अपनी सोच बदलें तो हम अपने जीवन में किसी भी परिस्थितियों में खुश रह सकते है। मनुष्य अगर खुश रहे तो जीवन के किसी भी पड़ाव पर वह बिमार नही पड़ सकता। खुश रहना अपने आप में एक थैरेपी का काम करती है जो सभी मौसम में आपकों तंदरूस्त रखती है।

तेनालीराम की कहानी – जादूगर का घमंड

एक दिन राजा कृष्ण देव राय के दरबार में एक बहुत ही प्रसिद्ध जादूगर आया। उसने बहुत देर तक सबको हैरान कर देनेवाली अपनी जादूई करतब दिखाई।

पूरे दरबार में उसकी वाह-वाही किये और उनसे साथ में सबका भरपूर मनोरंजन किया। वहाँ से जाते समय राजा से उसे ढ़ेर सारे उपहार भी प्राप्त हुआ, पर जादूगर जाते-जाते अपनी कला के घमंड में सबको चुनौती दे डाली-

उसने कहा कि “क्या कोई व्यक्ति मेरे जैसे अद्भुत करतब दिखा सकता है? क्या कोई भी राजा कृष्ण देव राय के दरबार मे ऐसा नही जो मुझे यहाँ टक्कर दे सकता है?

इस खुली चुनौती को सुन कर सारे दरबारी चुप हो गए। परंतु तेनालीराम को इस जादूगर का यह इतना अभिमान अच्छा नहीं लगा।
वह तुरंत उठ खड़े हुए और बोले कि हाँ मैं तुम्हे चुनौती देता हूँ कि जो करतब मैं अपनी आँखें बंद कर के दिखा दूँगा वह तुम खुली आंखो से भी नहीं कर पाओगे। अब बताओ क्या तुम मेरी चुनौती स्वीकार करते हो?

जादूगर अपने अहंकार में अंधा था। उसने तुरंत इस चुनौती को स्वीकार कर लिया।

तेनालीराम ने रसोईयों को दरवार में बुलाया और बोला रसोई से मिर्ची का पाउडर ले आए। दरवार में बैठे लोग सोचने लगे ये तेनालीराम मीर्च पाउडर का क्या करेगा?

कहीं यह पुरे राज्य की बदनामी ना करा दे। इसे हर व्यक्ति से उलझने की क्या पड़ी है। अब देखते है यह क्या करेगा।

दरवार में जब मिर्ची का पाउडर आया तो तेनालीराम ने अपनी आँखें बंद की और उन पर एक मुट्ठी भर मिर्ची पाउडर डाल दिया। फिर थोड़ी देर में अपनी आंखें के उपर से मिर्ची पाउडर झटक कर कपड़े से आँखें पोंछ कर शीतल जल से अपना चेहरा धो लिया। और फिर जादूगर से कहा कि अब तुम खुली आँखों से यह करतब करके अपनी जादूगरी का नमूना दिखाओ।

घमंडी जादूगर को अपनी गलती समझ आ गया। उसने सबसे हाथ जोड़ कर माफी मांगी और राजा के दरबार से चला गया।
राजा कृष्ण देव राय अपने चतुर मंत्री तेनालीराम की इस बुद्धिमानी से अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होने तुरंत तेनालीराम को पुरस्कार दे कर सम्मानित किया और राज्य की इज्जत रखने के लिए धन्यवाद दिया।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि आपके पास ज्ञान कितना भी हो पर उस ज्ञान पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए। घमंड होने से ज्ञान की कोई भी महत्व नही होता है। लोग हमेशा शांत स्वभाव के लोगों की ज्ञान को ही पसंद करते है।

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