Short Stories With Moral For Kids | बच्चों के लिए नैतिक के साथ लघु कथाएँ

आज हम आपके लिए बच्चों के लिए नैतिक के साथ लघु कथाएँ (Short Stories With Moral For Kids) के कड़ी में एक मजेदार बंदर और राहगीर की कहानी लेकर आये हैं। जिसमें हम पढ़ेंगे कि वह किस प्रकार अपनी बुद्धिमता से अपना खोया सामान वापस पा लेता है। इसके साथ ही एक लालची दुकानदार के बारे में पढ़ेंगे कि लालच करने से लोग कैसे उसका किस तरह मजाक बनाते है। हाँ, अंत में उसे फिर सुधार भी देते है।

Short Stories With Moral For Kids in Hindi

अभी फिलहाल हम यहाँ दो प्रमुख कहानी पढ़ेंगे। अगर आपको कहानी पढ़ने के बाद कैसा लगा यह नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बतायें-

लालची चिकन वाली

एक गांव में माया नाम की एक औरत चिकन का दुकान चलाती थी। वह बहुत ही लालची महिला थी। उसके दुकान पर जो भी चिकन लेने आता। वह उससे हमेशा ज्यादा पैसे लेने के चक्कर में रहती थी।

उस गांव वाले की मजबूरी थी कि उस गांव में एकमात्र चिकन की दुकान माया की ही थी। इसलिए वह मनचाहे दामों में चिकन बेचती थी। जब उसके गांव के लोग उसकी इस आदत से परेशान हो गए तो दो-चार लोगों ने माया को सबक सिखाने की सोचने लगे।

एक दिन की बात है। माया दोपहर के समय अपना दुकान बंद कर घर जा रही थी तभी एक पेड़ से आवाज आई। माया-माया तुम रूक जाओ। अपना नाम सुन कर माया इघर-उघर देखने लगी। तभी उसकी नजर एक भैसे पर पड़ी जो पेड़ के ठीक नीचे खड़ा था।

माया मोटा काला भैंसे को देख डर गयी। माया बोली कौन हो तुम और मेरा नाम कैसे जानते हो?

मै यमराज हूँ। तुम्हारा वक्त हो चुका है। तुम उस भैंसे पर बैठ जाओ और ऊपर नरकलोक में तुम्हें जाना होगा। माया बोली नर्क लोक में क्यों? मैंने क्या पाप किया है जो मुझे नर्क में भेज रहे हो।

तुम बहुत ही स्वार्थी स्त्री हो। तुम्हें नहीं मालूम तुम हर रोज 5-6 लोगों को ठगती हो झुठ बोलती हो। माया बोली, क्षमा यमराज, मैं अब ऐसा नहीं करुँगी। मुझें अपनी गलती का एहसास हो गया है। मुझेें मांफ कर दो। मुझें कुछ वक्त दो ताकी मैं अपनी गलती को सुधार सकुं। मेरे छोटे-छोटे बच्चें भी हैं। अभी आप मुझें इस दुनियां से ना ले जाओ।

कुछ देर सन्नाटा के बाद एक दम से आवाज आई। ठीक है माया, हाथ जोड़ कर अपना आंख बंद करो और इस घटना के बारे किसी से भी जिक्र नहीं करना। वरना मुझें तुम्हें अपने साथ ले जाना पड़ेगा।

माया डर से आंख बंद कर सड़क के बीचों बाच ही बैठ गई। थोड़ी देर बाद कुछ राहगीर आए और माया को दोपहर में सड़क के बीच बैठा देख पुछने लगें, माया क्या हुआ तुम्हारी तबीयत तो ठीक है। इतनी धूप में यूं क्यों बैठी हो?

माया किसी को कुछ नहीं बोली और चुप-चाप अपने घर की ओर चली गई। अगली सुबह माया अपनी दुकान पर आए ग्राहक से बहुत प्यार और स्नेह से बात कर रही थी और चिकन के भी ठीक दाम ले रही थी।

यह सब कुछ दूरी पर बैठे कुछ लोग यह देख मुस्कुरा रहे थे। असल में इन्ही लोगों ने यमराज बन माया को सबक सिखाया था।

टोपी वाला और बंदरों की कहानी।

बहुत पुरानी बात है। एक टोपीवाला था। वह मस्ती में हाँक लगाता, “टोपियाँ ले लो, टोपियाँ, रंग बिरंगी टोपियाँ, पाँच की, दस की, हर उम्र के लिए टोपियाँ ले लो।”

एक शहर से दूसरे शहर टोपियाँ बेचने जाया करता था। एक बार जंगल से गुजरते समय वह थककर एक पेड़ के नीचे विश्राम करने बैठ गया। ठण्डी-ठण्डी हवा चल रही थी। उसे शीघ्र ही उसकी आँख लग गई।

उसी पेड़ पर ढेर सारे बंदरों का बसेरा था। यह बात टोपी बेचने वाला नहीं जानता था। बंदरों ने टोपीवाले को सोते देखा तो एक-एक कर सारे नीचे उतर आए और उसकी गठरी खोलकर सबने एक-एक टोपियाँ ले लीं और वापस पेड़ पर जाकर बैठ गए।

सभी टोपियाँ पहनकर खुशी से ताली बजाने लगे और आपस में खेलने लगें। ताली की आवाज सुनकर टोपीवाले की आँख खुल गई। उसने अपनी गठरी खोली पाई और सभी टोपियां को गायब पाया। इधर-उधर देखने लगा पर टोपियाँ नहीं दिखी।

अचानक उसकी नजर पेड़ पर टोपी पहने बंदरों पर पड़ी। टोपी वाला यह देखकर परेशान हो गया। टोपीवाले को एक टोपी जमीन पर पड़ी मिली। उस टोपी को देख उसे कुछ सूझा। उसने उस टोपी को पहले तो बंदरों को दिखकर पहन लिया। उसके बाद अपनी टोपी उतारी और नीचे फेंक दी।

नकलची बंदरों ने उसकी नकल उतारी और उन्होंने भी अपनी- अपनी टोपियाँ उतारकर नीच फेंक दीं। टोपीवाले ने उन्हें समेटा और गठरी बनाकर खुशी-खुशी वहाँ से चल पड़ा।

अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर टोपीवाले ने अपनी सारी टोपी वापस पा ली।

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