कहावतों की कहानियां हिंदी में। Kahavaton ki Kahaniyan in Hindi

Kahavaton ki Kahaniyan: अकसर हम आम जीवन में बहुत सारे कहावतों को उपयोग में लाते हैं। क्या आपने जानते हैं कि इन कहावतों के पीछे भी एक कहानी छुपी है? हम इसको इस तरह से भी कह सकते हैं कि सभी कहावतों के पीछे कोई न कोई कहानी छुपी है। आज हम उसी कहावतों के पीछे की कुछ कहानियां लेकर आये हैं। जिसको पढ़कर आप जान पायेंगे कि आखिर इन कहावतों की शुरुआत कब और कैसे हुई?

Kahavaton ki Kahaniyan | कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली

उज्जयिनी राज्य के राजा का नाम राजा भोज था। वह बहुत पराक्रमी और विद्वान था। राजा अपने राज्य में विद्वान और कलाकारों का आदर-सत्कार करता रहता था।

राजा भोज के दरबार में कालिदास, भवभूति जैसे तमाम विद्वान पंडित मौजूद थे। इस बात का राजा को बहुत गर्व था।
एक दिन राजा भोज के राज्य में एक भट्टाचार्य आया। उसने अपने एक शिष्य को राजा भोज के दरवार में भेजा। उसके शिष्य की अनोखी वेशभूषा के कारण सभी लोग देखने के लिए धीरे-धीरे इक्ठा हो जाते है।

भट्टाचार्य के शिष्य ने राजा के दरवार में कहा कि मेरे गुरू आपके विद्वानों से शास्त्रार्य करना चाहते हैं। वे मारवाड़, गुजरात आदि के विद्वानों को हराते हुए चले आ रहे हैं।

राजा ने शिष्य से कहा, आओं आप भट्टाचार्य जी को सम्मान के साथ ले लाओ, उनके ठहरने की और खाने-पीने का भी व्यवस्था यहीं राजमहल में होगा।

राजा ने अपने दरबार की पंडित-सभा को शास्त्रार्थ करने के लिए तैयार के लिए भी कह दिया।
राजा भोज का दरबार लगा हुआ था। दरबार के सभी पंडित शास्त्रार्थ के लिए अपने-अपने आसन पर विराजमान थे। भट्टाचार्य के आने का इन्तजार किया जा रहा था। थोड़ी देर बाद भट्टाचार्य ने अपने शिष्य के साथ प्रवेश किया।

भट्टाचार्य की वेशभूषा देखकर लोगों को आश्चर्य हुआ। कुछ लोगों के होठों पर हंसी आ गई। भट्टाचार्य के सिर पर हाथी को वश में करने का अंकुश बंधा था। गले में कंठे जैसा आभूषण पहने था। पेट पर एक वस्त्र लपेटे था। मुंह में एक तिनका दबाए हुए था। उसके शिष्य के हाथ में एक कुदाल था।
राजा भोग अपने आसन से उठे और भट्टाचार्य को आसन पर विराजमान होने को बोले और फिर अपने आसन पर बैठ गए।

शास्त्रार्थ आरम्भ हुआ, राजा भोज के राज्य के विद्वान एक-एक करके हार गए। सबको हराने के बाद भट्टाचार्य ने कहा, राजन आपकी नगरी में चार,पांच दिन रूका हूं, कोई और पंडित या विद्वान बचे हो तो उन्हें भी शास्त्रर्थ के लिए बुला सकते है। इतना बोल कर भट्टाचार्य अपने शिष्य के साथ राज्य सभा से उठ कर वहां से चले गए।

अपने पंडित के हार की वजह से राजा भोज को पहली बार शर्मिदगी का सामना करना पड़ा था। राजा भोज को रात में अपने कक्ष में नींद नहीं आ रहीं थी, वह बिना किसी को बताए, रात को हि अकेले जंगल में घुमने निकल गए।

सुबह का समय था, राजा भोज जब अपने महल की ओर जंगल से वापस आ रहे थे, उनकी नजर एक तेली पर पड़ी। तेली घानी से तेल निकाल रहा था। भोज उसे तेल निकालता कुछ देर से चुपचाप देख रहे थे। क्योंकि उसका एक आंख नहीं था, वह काना था, परन्तु उसका शरीर सुडौल और चेहरे पर तेज दिख रहा था जिससे वह बुद्धिमान दिख रहा था।

राजा भोज उसके पास गए और बोले तुम्हारा नाम क्या है?,

तेली राजा भोज को देख कर प्रणाम किया और बोला- मेरा नाम गंगू हैं।

गंगू की हालत देखते हुए राजा भोज ने कहा- घबराओ मत मैं राजा भोज हूं, मेरे साथ मेरे दरबार में चल कर, क्या एक व्यक्ति से बात कर सकते हो?,
गंगू ने कहा- महाराज में आपकी आज्ञा कैसे टाल सकता हूं, और गंगू महाराज के साथ महल चला आया।

राजा भोज ने रास्ते में गंगू को भट्टाचार्य के बारे में सारी बातें बता दी, और उसे क्या करना है यह भी अच्छे से समझा दिया।

महल आते ही गंगू को अच्छे कपडे़ और जूते पहला दिए, गले में मोतियों का हार और सोन के आभूष भी पहने को दिया गया। गंगू इन कपड़ों में बहुत ही सुंदर दिख रहा था।

राजा भोज उसके बाद दरबार में अकेले चले गए, दरबार लगी हुई थीं, थोड़ी देर बाद गंगू भी दरबार में आया, गंगू को आते देख राजा अपने आसन से खड़े हो गए, राजा को खड़ा होता देख, दरबार में उपस्थित तमाम लोग खड़े हो गए।

राजा भोज ने गंगू को भट्टाचार्य के पास बैठने को बोला और शास्रार्थ आरम्भ करने को बोले।

शास्त्रार्थ आरम्भ होते ही, भट्टाचार्य ने गंगू को सर से पैर तक देखा, भट्टाचार्य ने सोचा आज पंडितों को मूक शैली का प्रदर्शन करके दिखाते है। यह सोचते ही भट्टाचार्य ने गंगू की तरफ अपनी एक अंगुली उठाई।

गंगू को लगा भट्टाचार्य बोल रहा है, मैं तुम्हारी बची हुई वह आंख भी फोड दूंगा, यह सोचते हि गंगू को भट्टाचार्य पर गुस्सा आ गया।

गंगू ने फिर भट्टाचार्य की ओर दो अंगुलियां सामने करते हुए मन ही मन बोला, मैं तुम्हारी दोनों आंखें फोर दूंगा। यह देख कर भट्टाचार्य दंग रह गए। उसकी सोच थी कि जगत में एक ही शक्ति है, लेकिन गंगू ने कहा दो है, शिव के साथ शक्ति भी इसलिए दो अंगुलियां सही है।

अबकी बार भट्टाचार्य ने अपना खुला पंजा उसकी ओर दिखाया। गंगू का मुंह फिर से गुस्से में तमतमा गया। उसने सोचा कि यह बोल रहा है। मुझें थप्पड़ मारेगा। गंगू ने अपना मुट्ठी बंद कर भट्टाचार्य की ओर इशारा करते हुए मन ही मन बोला तू क्या मुझें थप्पड़ मारेगा, मैं तेरे मुंह का जबरा एक घुसे में तोड़ दूंगा।

यह देख कर भट्टाचार्य के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं। भट्टाचार्य ने यह सोचने लगे कि मैंने तो कहा था कि पांच इन्द्रियां बहुत चंचल होती हैं। इन पर काबू पाना मुश्किल हैं, लेकिन इसने बताया कि इन इन्द्रियों को संयम द्वारा जीता जा सकता है। यह विचार आते ही भट्टाचार्य खुद को हारा हुआ समझ लिया।
उसी समय भट्टाचार्य अपने सर पर बंधा अंकुश और अपने बदन पर के सभी आभूष अतार कर फेंक और गंगू तेली के चरण में गिर कर हार मान ली, और अपने शिष्य के साथ वहां से चले गए।

भट्टाचार्य के दरबार से जाते ही खुशी का माहौल हो गया, राजा भोज उठे और गंगू को अपनी बांहो में भर लिए। इतना ही नहीं राजा भोज ने गंगू को अपने बराबर सिंहासन पर बैठाया। राजा भोज की पंड़ित-सभा ने भी गंगू को बहुत सम्मान दिया।

राजा भोज ने हमेशा के लिए गंगू तेली को अपने दरबार में जगह दे दी। कुछ दिन बितने के बाद राजा भोज को लगा की गंगू तेली की बुध्दि बहुत तेज है वह आए दिन राज-काज में गंगू तेली की राय लेने लगे।

दोनों में इतना प्यार और स्नेह बढ़ गया कि राजा ने अपने महल के पास ही गंगू तेली के रहने के लिए एक भवन बनवा दिया।
बाद में सबको पता चल गया कि यह बुद्धिमानी व्यक्ति कोई और नहीं इसी राज्य में रहने वाला एक तेली है।

राजा भोज और गंगू तेली जब नगर में साथ-साथ निकलते तो उनको संग देखकर नगर के लोग कहते- कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली। आज दोनों साथ-साथ रहते है।

दौलत आंधी होती है।

एक बार की बात है। दिल्ली में एक प्रसिद्ध गवैया रहता था और वह किसी दूसरे देश से आया था। उस समय दिल्ली का बादशाह तैमूर था। बादशाह का नाम तो तैमूर था लेकिन उसके एक पैर में लंग था यानी वह लंगड़ाकर चलता था। इसलिए लोग उसे तैमूरलंग कहते थे।

जब बादशाह को उस गवैये की आने की खबर अपने राज्य में मिली तो, बादशाह ने उसे अपने दरबार में एक कार्यक्रम करने को बुलवाया।

गवैया जिस दिन बादशाह के दरबार में आया उस दिन दरबार भरा हुआ था। उनमें दिल्ली के जाने-माने सेठ और साहूकार भी मौजूद थे। गवैये को संगत देने के लिए शाही संगीत वादक बुलायाए गए थे।

पूरे दरबार में सबकी निगाहें उस गवैया पर टिकी हुई थीं। गवैये जे जब गाना शुरू किया, तो खूब वाह-वाह हुई। सभी लोग ने उसकी जमकर प्रशंसा की।

तैमूरलंग ने प्रसन्न होकर हुक्म दिया कि गवैये को उसके पास लाया जाए। गवैया अंधा था, इसलिए एक व्यक्ति उसको लेकर बादशाह के पास पहुंचा। बादशाह ने अशर्फियों से भरा हुआ एक थाल उसे देते हुए कहा, लो कलाकार मैं तुम्हारी गायकी से बहुत खुश हुआ। यह छोटा-सा तोहफा मंजूर करो।

गवैये ने हाथ जोड़े और हाथों को आगे बढ़ाकर थाल ले लिया। बादशाह को गवैये का नाम जानने का मन हुआ। उसने पूछा, तुम्हारा नाम क्या हैं?

जहांपना मेरा नाम दौलत है। गवैये ने हाथ जोड़ते हुए कहा। नाम सुनते ही तैमूरलंग को कुछ मजाक सूझा। उसने गवैये से कहा दौलत भी अन्धी होती है क्या?

गवैये को भी मालूम था तैमूरलंग लंगड़ा चलता है, इस पर गवैये ने कहा- जहांपनाह दौलत अंधी होती है, तभी तो लंगड़े के यहां आई है।

गवैये की बात सुनकर दरबार में सन्नाटा छा गया। लोगों ने सोचा कि आज इस अंधे गवैये के साथ कुछ बुरा ना हो जाए। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बादशाह गवैये के इस बहादूरी भरे उत्तर से प्रसन्न हुए, उस गवैये को और भी धन देने का हुक्म दिया।

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