Raja ki Kahani in Hindi | राजा और सेनापति की कहानी | Motivational Story

Raja ki Kahani: एक जमाने में सिंदुराजा पूर्वी जावा पर शासन करता था। उसके सेनापति का नाम सिद्धपक्ष था। सिद्धपथ की पत्नी बहुत सुंदर और भली थी। सिद्धपक्ष उसे बहुत प्यार करता था।

सिद्धपथ की मां को उसकी पत्नी फूटी आंखों नहीं सुहाती थी। सारी सुंदरता और गुणों के वावजूद उसकी मां को यही लगता कि ये उसके बेटे के यांग्य नहीं हैं।

उसकी यह कुढ़न की असली वजह सह थी कि उसकी बहू निचले तबके की थी। सिद्धपक्ष जितना अपनी पत्नी से प्यार करता था। उसकी मां उतनी ही अधिक नफरत।

सिद्धपक्ष की मां चाहती थी जैसे भी हो ये दोनों अलग हो जाएं। सिद्धपक्ष की मां इन्हें अलग करना चाहती थी, तभी उसे एक खुश-खबरी मिली की वो दादी बनने वाली हैं।

सिद्धपक्ष की मां को बहुत गुस्सा आया और उसने एक योजना बनाई, वह एक दिन राजा के पास गई। पहले तो सिंदुराजा की बहुत प्रशंसा की और इधर-उधर की कुछ बातों के बाद राजा से बोली महराज इजेन पर्वत पर एक बहुत ही चमत्कारी पुष्प हैं। जिसके पास ये पुष्प होता हैं वह सदा सुंदर और युवा बना रहता है।

उसने कहां पर इजेन पर्वत का रास्ता मुश्कील है और वहां से लौटने में महीनों बल्कि सालों भी लग सकते हैं, फिर भी आप बहादुर सिद्धपक्ष को भेज सकते हैं, मुझे विश्वास है कि मेरा बेटा पुष्प ले आएगा।

सिद्धपक्ष को राजा ने महल में तुरंत बुलवाया और उसे आज्ञा दी इजेन पर्वत से पुष्प लेकर ही महल लौटे। सिद्धपक्ष ने राजाज्ञा सुनी। उसने भारी मन से जाने की तैयारी की। उसे अपनी गर्भवती पत्नी और मां को अकेले छोड़कर जाने में दुःख हो रहा था।

उसे जरा भी अनुमान नहीं था कि यह सब उसी की मां की कुटिल योजना हैं ताकि सिद्धपक्ष के जाने के बाद वह उसकी पत्नी को ठिकाने लगा सके।

सिद्धपक्ष के जाने के कुछ समय बाद ही उसकी पत्नी ने एक सुन्दर से बेटे को जन्म दिया। एक दिन वह अपने बेटे को सुलाकर नहाने गई तो उसकी सास दबे पांव कमरे में आई और बच्चे को उठा ले गई। वह तेज-तेज चलती हुई नदी पर पहुंची और कुछ माह के पोते को नदी में फेंक दिया।

सिद्धपक्ष की पत्नी नहाकर जब कमरे में लौटी तो बिस्तर पर बच्चा ना देख कर घबराई और घर के सभी जगह बच्चे को ढूढ़ा। और घर के बाहर सब से पूछने लगी। पर बच्चा उसे नहीं मिला।

सिद्धपक्ष की पत्नी खाना, पीना, सोना सब भूल कर अपने बच्चे को याद कर रोती रहती। कुछ ही दिनों में उसकी फूल सी काया कुम्हला गई, यहां तक कि वह बुरी तरह बच्चें की याद में बिमार हो गई।

दो वर्ष के बाद सिद्धपक्ष जब लौटा। उसके मन में अपनी पत्नी और बच्चें से मिलने की उत्सुकता थी। उसने राजा को महल में पुष्प सौंपा और घर लौट आया।

अभी वह अपने घर से कुछ कदम दूर ही था कि उसकी मां उसे देखते ही उसके पास दौड़ कर आ गई। अरे! बेटा तुमने कैसी लड़की के साथ विवाह किया। वह तो अपने बच्चे को नदी में फेंक आई।

अब वह बिमार रहने का नाटक करती हैं। वह बहू की जितनी बुराई कर सकती थी -उतनी की। सिद्धपक्ष को भला अपनी मां पर संदेह कैसे होता?

उसका मन अपनी पत्नी के प्रति कड़वा भर गया। वह अपनी के पास गया और गुस्से में बोला में तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर दूं, बता दो कि मेरे बच्चे को नदी में क्यों और कहां फेंका हैं।

उसकी पत्नी का चेहरा पीला पड़ गया, उसने कहा प्यारे सिद्धपक्ष में ऐसा कर सकती हूं, ये आप ने सोचा भी कैसे ऐसे भी मैं कुछ दिनों की मेहमान हूं, अगर आपको लगता हैं कि मैंने अपने बच्चे को मारा हैं तो आप मेरा हत्या कर दिजिए।

पर उससे पहले आप मुझे बताओ की मेरे बच्चे की नदी में फेंकने वाली बात आप को किस ने बताई? सिद्धपक्ष ने उत्तर दिया मां ने, उसकी पत्नी ने बोला आप मुझे वहां ले चलो, जिस जगह, मां ने बच्चे को फेंके जाने की बात बताई थी, सिद्धपक्ष अपनी पत्नी को ले गया।
इससे पहले की वह कुछ कहता उसकी पत्नी ने नदी में कूद गई।

‘हे भगवान यह तो डूब गई, अब मुझे कैसे पता चलेगा कि सच क्या था!’ सिद्धपक्ष किनारे खड़ा सोच रहा था। तभी सिद्धपक्ष ने देखा दो सफेद फूल नदी से बाहर निकले एक बड़ा और एक छोटा।

बड़े फूल ने कहा, सिद्धपक्ष, मेरे प्यारे ये है हमारा बेटा। मैंने इसे नदी के तल में पाया। यह खूद ही बताएगा की सच क्या है।’ छोटे फूल ने कहा, मेरे पिता, योग्य सेनापति सिद्धपक्ष, मेरी मां निदोष है। जब मैं कुछ माह का ही था, तो आपकी मां ने मुझे इस नदी में फेंक दिया।

बड़े फूल ने कहा, सिद्धपक्ष में आपसे बहुत प्यार करती हूं, मैं अपनी पत्नी धर्म को निभा रही थी। पर जब आपने मुझे अपने दिल से हि निकाल दिया तो मैं आपके साथ कैसे रह सकती तभी मैंने अपसे दूर जाना ही सही समझा मैं अब अपने बेटे के साथ ही रहूंगी।

यह कह कर बड़े फूल ने छोटे फूल को ऐसे समेटा जैसे मां बच्चे को गोद में लेती हैं, फिर दोनों फूल गायब हो गए।

सुनी हुई बात पर बगैर सोचे-समझे भरोसा नहीं करना चाहिए, चाहे वह बात कितने ही प्रिय या सगे ने ही क्यों न कही हो।

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