Honesty the inspiring hindi story | ईमानदारी – बूढ़े दुकानदार की हिंदी कहानी

हमें हिंदी स्टोरी से बहुत कुछ सीखने को मिलता हैं. अच्छी स्टोरी हमें प्रेरणा देती हैं. आज इसी क्रम में हम आपके लिए ईमानदारी – बूढ़े दुकानदार की प्रेणादायक हिंदी कहानी (Honesty the inspiring hindi Story) लेकर आये हैं.

Honesty the inspiring hindi Story | ईमानदारी – बूढ़े दुकानदार की हिंदी कहानी

भोपाल मध्यप्रदेश का प्रमुख नगर है और साथ ही प्रदेश की राजधानी भी है. काफी समय पहले की बात है. वहां एक अवकाश प्राप्त पुलिस अधिकारी रहते थे. उनका नाम था दीनदयाल सक्सेना. उनका परिवार अत्यंत बलवान और ईनामदार था. अपनी ईमानदारी और तत्पर सेवा के लिए श्री दीनदयाल सक्सेना ने राष्ट्रपति पदक भी प्राप्त किया था.

एक दिन की बात है. उनके परिवार का एक बालक अशर्फियों में से एक अशर्फी उठा ले गया. बालक सात से आठ बरस का रहा होगा. उसे यह भी मालूम नहीं था कि उन अशर्फियों का मूल्य क्या है. उसे बस यही पता था कि उससे किसी वस्तु को खरीदा जा सकता है.

शहर में जुमेराती दरवाजे के नीचेएक मियां साहब दुकान लगाकर बच्चों की रबर गेंद बेच रहे थे. बालक ने अशर्फी बूढ़े मियांजी के तरफ बधाई और एक रंगीन गेंद की तरफ इशारा करते हुए बोला, “बाबाजी, वह गेंद मुझे दे दो.”

उस बूढ़े दूकानदार ने उस बालक को वह गेंद दे दी और उनकी दी हुई अशर्फी अपने हाथ में दबा ली.

बालक गेंद पाकर बहुत खुश हुआ और ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर के तरफ चल दिया. इसके बाद वह बुजुर्ग दूकानदार भी उसके पीछे उसके घर पहुंच गए. बालक के पिता के हाथ में अशर्फी देते हुए बूढ़े दुकानदार ने कहा, “जनाब जरा बच्चों पर निगाह रखा कीजिए. आपके साहबजादे ने मुझे यह अशर्फी देकर यह गेंद खरीदी है”.

बूढ़े दुकानदार की बात सुनकर बालक के पिता हैरान हो गए और कुछ समझ नहीं सके.

तब दुकानदार ने उनको पुनः बताया, “यह बालक मुझे यह अशर्फी देकर वह गेंद लाया है  जो इसके हाथ में है”.

बालक के पिता दूकानदार के ईमानदारी पर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन बुजुर्ग दुकानदार को ईनाम देने लगे. परन्तु उन्होंने न कोई ईनाम लिया और न ही गेंद का मूल्य लिया. वो बालक के पिता को अशर्फी लौटा कर वापस चल गए.

ऐसे व्यक्ति की जितनी प्रशंसा की जाए, कम ही है. सच ही कहा गया है कि कोई भी किसी के ईमानदारी की बराबरी नहीं कर सकता है.

सुखी रहने का तरीका: संत तुकाराम की प्रेरणादायक कहानी

बहुत समय पहले की बात है. महान संत तुकाराम अपने आश्रम में बैठे हुए थे. उसी समय उनका एक शिष्य, जो स्वाभाव से थोड़ा क्रोधी था उनके समक्ष आया और बोला- गुरूजी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाये रहते हैं, न आप किसी पर क्रोध करते हैं और ना ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं? कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य बताइए? इसपर संत बोले- मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूं.

“मेरा रहस्य. वह क्या है गुरु जी?” शिष्य ने आश्चर्य से पूछा.”तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो.” संत तुकाराम दुखी होते हुए बोले. कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं संत तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था? शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद ले वहां से चला गया.

उस समय से शिष्य का स्वभाव बिलकुल बदल सा गया. वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पर क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता. वह उनके पास भी जाता, जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया था और उनसे माफ़ी मांगता. देखते-देखते संत की भविष्यवाणी को एक हफ्ते पूरे होने को आये.

अब शिष्य ने सोचा चलो अब आखिरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेते हैं. वह उनके समक्ष पहुंचा और बोला- “गुरुजी, मेरा समय पूरा होने वाला है, अंतिम समय में कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये.”

गुरूजी ने बोला, “मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र. अच्छा, ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए, उन्हें अपशब्द कहे? ”संत तुकाराम ने प्रश्न किया. “नहीं-नहीं, बिलकुल नहीं. मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गँवा सकता था? मैं तो सबसे प्रेम से मिला, और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था, उनसे क्षमा भी मांगी” शिष्य तत्परता से जबाब दिया.”

संत तुकाराम मुस्कुराए और बोले, “बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है.”

“मैं जानता हूं कि मैं कभी भी मर सकता हूं, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूं, और यही मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है.

अब शिष्य समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था.

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि असल में हमारे पास भी सात दिन ही बचें हैं- “रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि, आठवां दिन तो बना ही नहीं है. “तो आइये आज से ही परिवर्तन आरम्भ करें.”

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