एक दिन की बात है. चूहे ने अपने बिल से बाहर अपनी गर्दन निकली. दरअसल वह यह जानना चाहता था कि सवेरा हुआ कि नहीं. उसने देखा कि सूरज निकल आया था. चूहे ने सोचा कि “अब भोजन के तलाश में निकलना चाहिए”. चूहा यह सोच ही रहा था कि बरगद के डाल पर बैठा कौआ बोला- “चूहे भैया, बिल से बाहर आओ और मेरे मित्र बन जाओ.” चूहे ने कहा- “न भाई न. तुम तो मुझे खा जाओगे.”
उसी समय अचानक से वहां एक हिरन आ गया. कौए ने हिरन से राम राम कहा. दोनों मित्र एक दूसरे को देखकर परस्पर प्रसन्न हुए. हिरन ने भी चूहे से कहा- “चूहे भैया. बिल से बाहर आ जाओं और हमारे मित्र बन जाओ.” हिरन के कहने पर चूहा अपने बिल से बाहर आ गया. इसके बाद तीनों मित्र बन गए.
एक दिन की बात है तीनों मित्र अपने-अपने भोजन के तलाश में चले गए. शाम तक कौआ और चूहा वापस लौट आये मगर हिरन वापस नहीं लौटा. इसके बाद कौए ने चूहा से कहा कि “मैं जाकर देखता हूँ, तुम यहीं रहना.”
इतना कहकर कौआ उड़ चला. हिरन को ढूंढता हुआ वह घने जंगल में पहुंचा. कौआ ने उड़ते-उड़ते देखा कि हिरन एक शिकारी के जाल में फंसा गया है और जाल से निकलने के लिए छटपटा रहा है. कौआ ने हिरन को संतावना देते हुए कहा- “हिरन भैया आप जिनका न करों, अभी तुरंत मैं चूहे भाई को लेकर आता हूं. जिसके बाद वह आपका जाल काट देगा और तुम आजाद हो जाओगे”.
कौआ ने फुर्ती दिखते हुए तेजी से उड़ा और चूहे के पास पहुंच गया. उसने जैसे ही चूहे को पुकारा वैसे ही चूहा बिल से बाहर आ गया. उसने पूरी कहानी चूहे को सुनाई और चूहे को अपनी पीठ पर बिठाया और दोनों तेजी से हिरन के पास पहुंच गए. हिरन को जाल में फंसा पड़ा देख चूहा तड़प उठा. कौआ एक पेड़ की डाली पर बैठ गया. उसने चूहे को कहा- कि “चूहे भैया, मैं यहां बैठकर शिकारी को देखता हूं और तुम जल्दी से जाल को कुतर डालो.”
कौए के इतना कहते ही चूहा ने थोड़ी ही देर में जाल को कुतर दिया. चूहे ने दम भी नहीं लिया था कि कौआ चिल्लाया- “अरे भागो-भागो, शिकारी आ रहा है.” इतना कहकर कौआ उड़ लिया और हिरन और चूहा भी तेजी से दौड़ कर बरगद के पास पहुंच गए. सभी मित्रों के सहयोग से हिरन की जान बच गई.
शिक्षा: इसलिए कहा गया है कि मित्रता से लाभ है और सच्चा मित्र वही जो अपने मित्र के मुसीबत में काम आये.
असहयोग का परिणाम
एक व्यापारी था. वह पहाड़ी गावों में लोगों की आवश्यकता का सामान बेचा करता था. इस काम के लिए उसने दो गधे रखे हुए थे. एक दिन की बात है. व्यापारी अपने दोनों गधों पर बराबर सामान लादकर गांव में बेचने के लिए चला. उन बोरों में नमक, गुड़, दाल, चावल आदि भरे हुए थे. उन दोनों गधों के से एक गधा बीमार था. व्यापारी को इस बात का पता नहीं था. इसलिए उसने दोनों गधों पर बराबर सामान लाद दिया था.
पहाड़ी रास्ता ऊंचा-नीचा था. उसपर चलते हुए बीमार गधे को बड़ा कष्ट हो रहा था. उसकी तबियत और अधिक ख़राब होती जा रही थी. इसलिए उस बीमार गधे ने दूसरे गधे से कहा-” भाई मेरी तबियत बहुत खराब है, मेरी मदद करो”. दूसरे गधे ने कहा कि “बताओ क्या मदद कर सकता हूं”. इसके बाद बीमार गधे ने कहा कि “मैं अपने पीठ पर रखा एक बोरा नीचे जमीन पर गिरा देता हूं तुम यही खड़े रहना.
इसके बाद हमारा मालिक उस गिरे हुए बोर को तुम्हारे पीठ पर डाल देगा. इसके बाद मेरा बोझ कुछ कम हो जायेगा तो मैं तुम्हारे साथ चलता रहूंगा. अगर तुम आगे चले गए तो गिरा हुआ बोरा मालिक फिर से मेरी ही पीठ पर डाल देगा”.
दूसरे गधा उनकी बातों से सहमत नहीं हुआ. उसने उतर में कहा- ” मैं तुम्हारा बोझ ढोने के लिए क्यों खड़ा रहूं? मेरी पीठ पर क्या बोझा कम लड़ा है? मैं तो अपने ही हिस्से का बोझा ढोऊंगा.
दूसरे गधे की बात सुनकर बेचारा बीमार गधा चुप हो गया. मगर धीरे-धीरे उसकी तबियत और अधिक ख़राब होती जा रही थी. अचानक वह पत्थर के एक टुकड़े से ठोकर खाकर गिर गया और एक गड्ढे में लुढ़क गया. उसके प्राण निकल गए.
अपने एक गधे के यूं अचानक मर जाने से व्यापारी दुखी हो गया. थोड़ी देर वह खड़ा रहा फिर कुछ सोचकर उसने उस मरे हुए गधे का सामान स्वस्थ्य गधे पर डाल दिया. अब उस गधे को पछतावा हुआ. अगर वह पहले ही अपने साथी की बात मान लेता तो उनको दोनों का बोझ ढोना नहीं पड़ता.
शिक्षा: संकट पड़ने पर अपने साथी का सहयोग देना आवश्यक है.
खरगोश की नादानी
एक बार बहुत जोर की गर्मी पड़ी. धुप भी उन दिनों तेज निकलती थी. धुप और गर्मी से पेड़-पौधे सूखने लगे. खेतों में फसल सूखने लगी. जिन मैदानों में पशु चरते थे, वहां की घास सूखने लगी. सभी तालाब का पानी सुख गया.
जंगल में एक खरगोश रहता था. गर्मी की अधिकता से वह घबरा गया. पानी कहीं था ही नहीं, उसके मारे प्यास से होंठ सुख गए.
खरगोश ने सोचा- “सूर्य ने हमें परेशान कर रखा है. जंगल के जानवर व्यर्थ ही सूर्य से डरते हैं. मैं सूर्य को उनकी करनी का फल चाखऊंगा.
इसके बाद खरगोश ने बांस के खपच्ची का धनुष्य बनाया. जंगल में से सरकंडे तोड़कर बहुत से बाण बना लिए. फिर वह सूर्य को मजा चखाने के लिए जंगल से बाहर मैदान में आ गया.
उस मैदान में बड़े-बड़े पत्थर पड़े हुए थे. खरगोश एक बड़े पत्थर के पीछे छुप गया. फिर धनुष्य पर वाण तानकर सूर्य को ओर चला दिए. सूर्य यह देखा तो खरगोश की नादानी पर हंसने लगा.
इसके बाद खरगोश वाण पर वाण मरता गया. ऐसा करते-करते उसके वाण समाप्त होने लगें. खरगोश के इतना वाण चलने के बाद भी सूर्य के तपन में कोई कमी नहीं आई. अचानक बादल का एक टुकड़ा सूर्य के सामने आ गया. जिसके कारण सूरज उसमे छुप गया.
वास्तविकता को जाने बिना खरगोश ख़ुशी से उछल पड़ा. नाचने-गाने लगा. वह जोर-जोर से कहने लगा – “सूर्य को अपनी करनी का फल मिल गया.”
थोड़ी देर में बादल हट गया और फिर से पहले ही तरह सूर्य चमकने लगा. खरगोश डर से कंपनी लगा. उसने सूर्य के हाथ जोड़े और झाड़ियों में छिप गया.
कहते हैं कि तब से अब तक खरगोश धुप से डरते हैं. जब सूर्य तपता है तो वे झाड़ियों में जाकर छुप जाते हैं. शाम होने पर ही वे बाहर निकलते हैं. वे शाम-सवेरे ही उछल-कूद का आनंद उठा पाते हैं.
शिक्षा: “सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना ठीक है”
शरारत बन्दर का दंड
एक गांव था. उस गांव में कई वृक्ष थे. उन वृक्षों पर बहुत से बन्दर उछलते- कूदते रहते थें. उन बंदरों में के बन्दर बहुत शरारती था. वह लोगों के घरों में घुस जाता और तरह-तरह से उधम मचाता. कभी किसी के घर में कपडे फाड़ देता, तो कभी किसी के घर में बच्चों के किताबें फाड़ देता. किसी के घर के बतरन उठा ले जाता और किसी की रसोई में से रोटिंयां या खाने का अन्य समान उठाकर भाग जाता. कभी-कभी तो वह बच्चों के मुंह भी नोच लेता था.
इस प्रकार से बन्दर ने बड़ा भारी आतंक फैला रखा था. उसकी शरारतों से गांव वाले तंग आ गए थे. उनका विचार था कि इस बन्दर से पार पाना संभव नहीं है.
बन्दर से छुटकारा पाने के लिए लोग भांति-भांति के उपाय सोचने लगे. एक दिन गांव के एक आदमी को एक उपाय सुझा. उसने गांव के दूसरे लोगों से कहा- “इस बन्दर से छुटकारा पाने का उपाय मैंने सोच लिया है. मई इसको अकल ठीक कर दूंगा.”
वह आदमी कुम्हार के घर गया. उसने कुम्हार से एक ऐसा घड़ा मांगा, जिसका मुंह तंग हो. कुम्हार ने उसके कहे अनुसार ठीक वैसा ही घड़ा ढूंढकर दे दिया.
आदमी उस घड़े को लेकर घर आ गया. उस घड़े को उसने अपने घर के आंगन को खोदकर गाड़ दिया. फिर ताजे भुने चने लाकर उस घड़े में डाल दिए.
बन्दर चनों को बड़े ही चाव से खाते हैं, चने की गंध को वो दूर से ही सूंघ लेते हैं. शरारती बन्दर को भी चनों की गंध आ गई. गंध लगते ही वह दौड़ा-दौड़ा वहां आ गया. घड़े में जब बहुत से चने देखे तो वह बहुत खुश हुआ.
चने निकलने के लिए बन्दर ने उस घड़े में हाथ डालकर बहुत से चने मुठी में भर लिए. घड़े का मुंह तंग था, इसलिए बंधी हुई मुठ्ठी उसमे से निकल नहीं पा रही थी. बन्दर मुठ्ठी निकलने के लिए बहुत जोर लगा रहा था. वह खूब उछाला-कूदा और चिल्लाया पर चने की बंद मुठ्ठी घड़े से बाहर नहीं निकली.
लालच के कारण उसने मुठ्ठी के चनों को नहीं छोड़ा. तभी वह आदमी वहां आया और रस्सी से बन्दर को बांध लिया. पहले तो उसने बन्दर की खूब पिटाई की और बाद में मदारी को दे दी. बन्दर को शरारत का फल मिल गया.
शिक्षा: “शैतानी जब सीमा लांघ जाती है तो परिणाम बुरा निकलता है.”