Story in Hindi | स्टोरी इन हिंदी: छल के साथ छल- एक कुत्ते और एक मुर्गें में बड़ी अच्छी दोस्ती थी। दोनों साथ-साथ उठते बैठते, खाते-पीते। एक दिन दोनों घुमने गांव से निकल एक जंगल में चले गए। दोनों बैठकर बातें करने लगे, बातचीत में इस कदर खो गए कि उन्हें समय का पता ही नही चला कब शाम हो गई, और कब रात। जब अंधेरा चारों ओर घिर आई तो वे चौंक गए।
मुर्गा घबराकर बोला- अब क्या किया जाए? बातों-बातों में सूरज डूब गया और देखों आसमान में चांद निकल आया है। अब रात में हम घर कैसे जाएं?
कुत्ता बोला- अरे इसमें घबराने की क्या बात है। तुम उस पेड़ की सबसे उंची डाल पर जाकर बैठ जाओं और मजे से सो जाओ, मैं तुम्हारे सामने वाले पेड़ के नीचे सो जाउंगा ताकि तुम पर नजर भी रख सकूं, कोई जंगली जानवर तुम्हारे पेड़ पर न चढ़ने पाए और सुबह होते ही अपने गांव लौट चलेगेें।
मुर्गें को कुत्ते की बात सही लगी, वह तुरंत पेड़ पर चढ़ गया और सबसे उंची डाल पर जा बैठा और वहीं सो गया।
सवेरा हुआ सबसे पहले मुर्गे की आंख खुली और अपनी आदत से अनुसार उसने बांग लगाई।
कुक्कडू कूं कुक्कडू कूं
मुर्गे की आवाज पूरे जंगल में गूंज गई।
सारे जानवर हैरान हुए कि आज जंगल में मुर्गा कैसे बोला? कहां से बोला?
मगर एक चालाक गीदड़ ने दिशा का अनुमान लगा लिया कि आवाज कहां से आई। मुर्गा किधर से बोला- वह दौड़ा-दौड़ा उस पेड़ के करीब आया और मुर्गे को देखकर मन में सोचने लगा कि वाह! आज तो बड़ी अच्छी सुबह हुई, सुबह-सुबह मुर्गे खाने को मिलेगा। बस थोड़ी चतूराई की जरूरत है, जब यह मुर्गा पेड़ से नीचे आएगा और मैं इसे दबोच पाउंगा।
यह सोचकर पेड़ के नीचे आकर बड़े मीठी आवाज में बोला- वाह मुर्गें भाई! तुम्हारा मीठा गाना सुनकर तो दिल बाग-बाग हो गया। बात यह है कि मुझें भी गाने का शोक हैं, मगर मेरी आवाज तुम्हारी जैसी मीठी नहीं हैं। जरा नीचे आकर मुझे भी मधुर गाना गाने के दो-चार गुन सिखाओ।
अपनी तारीफ सुनकर मुर्ग फूला न समया। मगर वह इतना भी बुद्धू भी नही था कि वह गीदड़ की बात में आ जाता। वह तुरंत गीदड़ के मन में क्या चल रहा है जान गया और बोला- तुम्हारा कहना तो ठीक है गीदड़ भाई! ठहरो ,मैं अभी नीचे आकर गाना गाने की बारीकियां तुम्हें सीखाता हूं। जरा एक काम करो, मेरा एक मित्र एक पेड़ के नीचे सो रहा है। वह बाजा बजाएगा और हम दोनों मिलकर गाएंगे। बड़ा मजा आएगा।
यह सुनते ही गीदड़ खुशी से उछल पड़ा। अरे दो-दो मुर्गे आज खाने को मिलेगा और उस पेड़ के नीचे लपककर गया, जिधर मुर्गे ने इशारा किया था। मगर जैसे ही वह पेड़ के करीब पहुंचा, वैसे ही उसकी नजर वहां सो रहे कुत्ते पर पड़ी, उसका मोटा, गठीला शरीर देखकर ही गीदड़ का प्राण सूख गया।
कुत्ता उन दोनों की बातें सुनकर पहले से ही सावधान हो चूका था, सोने का बहाना किए जमींन पर पड़ा था। जैसे गीदड़ करीब आया और कुत्ते को देखकर भागने को हुआ, कुत्ते ने झपटकर उसकी टांग अपने जबरे से पकड़कर चबा डाली। अब तो गीदड़ चीखता हुआ जंगल की ओर भागा।
मुर्गे ने बोला- अरे ठहरों गीदड़ भाई गाना तो सीख लो।
किसी ने सही कहा है छल करने वाले के साथ छल करने में कोई हर्ज नही।
बिना विचार का फल।
एक दिन एक सियार जंगल में भटकते-भटकते जंगल से बाहर निकल गया। वह किसी गांव के नजदीक जा पहुंचा, उसे भूख और प्यास लगीं थी। तभी उसकी नजर एक कुएं पर पड़ी, वह पानी देखने के लिए उस कुएं में झाका, तो गलती से कुआं में जा गिरा। वह कुआं अधिक गहरा भी नहीं था, मगर ऐसा भी नहीं था कि वह उससे बाहर निकल आता।
उसने बहुत कोशिश की मगर कामयाब न हुआ। सुबह से शाम हो गई। बाहर निकलने की कोशिश में सियार बुरी तरह घायल हो गया।
उधर भूख और प्यास ने भी उसे व्याकुल किया हुआ था। अब उसके शरीर में इतनी भी जान नही थी कि वह बाहर निकलने का प्रयास करता। हार थक कर वह एक कौने में बैठ गया और सुबह होने का इंतजार करने लगा।
सियार बेहद चालाक था उसे मालूम था की सुबह कोई ना कोई इस तरफ जरूर आएगा और अपने बुद्धिबल से वह कुएं से आजाद होकर ही दम लेगा।
जैसे-तैसे रात गुजरी और सुबह होने लगी, तभी एक बकरा उस कुएं की ओर से गुजर रहा था। सियार को लगा की कोई वहां से गुजर रहा है, तभी वह कुएं में से जोर-जोर से हंसने की आवाज निकाली।
सियार की हंसी सुनकर बकरा कुएं में झांकने आया। वहां सियार को देखकर बोला- अरे भाई सियार! कुएं में क्या कर रहे हो?
सियार ने बोला- मैं तो पानी पी रहा हूं, यह पानी बहुत मीठा है, एक पंडित मुझे जंगल में मिले थे, उन्होंने मुझे इस कुएं का राज बताया है, जो भी इस पानी को पियेगा वह अमर हो जाएगा। आओ भाई तुम भी आओ इस पानी को पी लो नही तो किसी मनुष्य को इस पानी का राज मालूम पड़ा तो वह इस पर भी पहरा बिठा देगा।
मीठे पानी रूपी अमृत की बात सुनते ही वह बकरा लालच में आकर कुएं में कूद पड़ा। सियार फौरन छलांग लगाकर उस की पीठ पर चढ़ा और दूसरी छलांग में कुएं से बाहर निकल आया। फिर बोला- भाई बकरे! तुम बड़े लालची और मूर्ख हो। कुएं में पानी नहीं है। मै तो असावधानी से गिर पड़ा था पर तुम तो अपने लालच की वजह से सुखे कुएं में आ गिरे।
बकरा मियमियाता हुआ बोला- मगर अब मैं इस कुएं से कैसे बाहर निकलूं सियार भाई?
इन्तजार करो, कोई ना कोई तुमसे भी ज्यादा मूर्ख आएगा तो तुम भी उसे मेरी तरह बुलाकर वैसे ही निकल आना जैसे मैं निकला हूं। कहकर वहां से सियार नो दो ग्यारह हो गया और लालची बकरा अपनी बेवकूफी पर अपना माथा पीटने लगा।
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