Moral Story in Hindi | मोरल स्टोरी इन हिंदी

Moral Story in Hindi | मोरल स्टोरी इन हिंदी | सत्य और असत्य – एक गांव में दो मित्र रहते थे। उनका नाम राजू और सोनू था। ये दोनों हमेशा एक साथ रहते थे, किन्तु दोनों की आदतें और स्वभाव एकदम अलग था।

राजू हमेशा ही सच बोलता और मेहनत का काम करने में भरोसा करता, तो वहीं सोनू हमेशा उल्टे-पुल्टे काम कर पैसे कमाने की बातें करता रहता।

सोनू अपने गांव के सेठ की तरह अमीर बनना चाहता था। वह अक्सर यहीं बातें राजू को बोलता रहता की मुझे सेठ की तरह पैसे वाला आदमी बनना है। हमें सिर्फ मेहनत वाला काम करने से कुछ भी हासिल नही होगा, कुछ अलग करना होगा।

राजू – सोनू को समझाता की अगर ज्यादा धन चाहिए तो तुम्हें गांव से निकल कर शहर जाकर काम करना चाहिए। गांव में दूसरों के खेतों में खेती करेगें, तो तुम सेठ की तरह नही बन पाआगें।

सोनू अपने गांव से दूर जाना नहीं चाहता था, पर एक दिन उसने सोचा क्यों ना राजू को भी अपने साथ शहर ले जाऊं। मैं भी शहर में अकेला नहीं रहूंगा और राजू भी मेरे साथ कुछ पैसे कमा लेगा।

सोनू दूसरे ही दिन राजू से बोलता है कि तुम हमेशा प्रदेश जाकर कमाने की बात करते हो, मुझे क्या वहां सचमूच पैसे ज्यादा मिलेंगे?
राजू- सोनू को बोलता हैं पैसे ज्यादा मिलेगें या नहीं, यह मैं भी नहीं जानता पर इतना मालूम हैं, वहां काम ज्यादा मिलेगें और अगर काम ज्यादा करेगें तो पैसो भी ज्यादा आऐगें।

सोनू- राजू की बात सुनकर खुश हो जाता हैं, भाई तो तु भी चल ना मेरे साथ मैं शहर में बिल्कुल अकेला रहूंगा। मैं कभी शहर गया भी नहीं अगर तू साथ होगा तो बात ही कुछ और होगी।

राजू पहले तो मना किया पर दोस्ती की खातिर वह भी शहर जाने के लिए राजी हो जाता हैं। अगले ही दिन दोनों मित्र अपने माता-पिता का आर्शिवाद ले कर गांव से शहर की ओर रवाना हो जाते हैं।

शहर में जाकर उन्होंने खुब मेहनत की, रात-दिन दोनों काम करते, शहर में उन्हें कोई भी काम करने में शर्म नहीं थीं, फिर वे एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते थे, दोनों एक दूसरे का ध्यान रखते हुए मिल-जुल कर खूब परिश्रम करने लगे।

उन दोनों की मेहनत का ही फल था, जो देखते-देखते एक साल बीत गए और उन्होंने खुब सारा पैसा इकट्ठा कर लिया। अब उन दोनों को अपने घर की याद भी आने लगी थी।

मां-पिताजी, भाई, बहन सब को देखना चाहते थे और उनके मन में यह भी आ रहा था कि जिस काम को करने के लिए वह अपने परिवार और गांव से दूर जाए थे। वह भी काम हो गया सेठ की तरह पैसे तो नहीं बना पाए थे मगर अभी सोनू को लगने लगा की यह पैसे भी कम नहीं हैं।
राजू और सोनू शहर से गांव अपने घर वापस आने लगें। गांव आते समय पैसे को एक बड़ी सी थैली में डाला और उस थैली को कपड़ों की गठरी के अंदर खूब अच्छी तरह से बांध दिया, ताकि कोई चोर उसे चुरा न ले।

गांव आने से पहले रास्ते में एक घना जंगल पड़ता था। इसलिए उन्हें अपने पैसों को और भी सुरक्षित रखना पड़ रहा था।

उसके बाद दोनों अपने घर की ओर निकल गए। जब वो जंगल को पार करने वाले थे, तो रात हो गयीं। वो दोनों अपने गांव से ज्यादा दूर नहीं थे।
ऐसे में सोनू के मन में एक विचार आया, शायद इतना सारा पैसा देखकर उसके मन में छल आने लगा था। उसने कहा, भाई राजू इतना सारा धन गांव ले जाकर क्या करेगें? क्यों ना इस पैसे को हम यहीं जंगल में छिपा देते है। इस पीपल के पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर दबा देते है। जब हमें पैसे की जरूरत होगी, हम दोनों यहां से पैसे निकाल कर ले जाएगें।

राजू सोनू की बात सुनकर बोला जैसा तुम्हें ठीक लगें भाई।

राजू सोचता हैं पैसा घर में रहे या इस पेड़ के नीचे जंगल में क्या फर्क पड़ता है।
सोनू ने कहा, जब हम दोनों ने मिलकर कमाया हैं तो मैंने कभी तुमसे हिसाब नही पूछा। आज भी इस पैसे में से थोड़े-थोड़े रूपये लेकर घर चलते हैं और बचे हुए रूपये को तुम ही जमींन में दबा दो, अच्छी तरह से।

राजू ने वैसा ही किया सारे रूपये को पीपल के पेड़ की जड़ में दबा दिया।

राजू अपने घर जाते ही अपने माता-पिता से अपनी कमाई का सारा हिसाब देते हुए बता दिया कि घर खर्च के लिए मैं आपको थोड़े ही रूपये अभी दे रहा हूं। पूरा पैसा चारों के डर से हमदोनों ने जंगल में एक पेड़ के नीचे दबा दिया हैं। जब आपको पैसे की जरूरत हो मुझें बता देता मैं आपको वहां से लाकर दे दूंगा। राजू के माता-पिता यह बात सुनकर खुश हो जाते हैं।

उधर सोनू के मन में यह विचार आया, क्यों ना मैं अकेला ही जंगल में जाकर पीपल के पेड़ के नीचे से छूपाया सारा पैसा अपने पास ले आऊं। क्योंकि उन पैसों पर सबसे ज्यादा मेरा हक हैं।

मैं ही राजू को अपने साथ शहर ले गया था। मेरा ही सपना सेठ की तरह अमीर बनने का था। यहीं विचार मन में लिए सोनू जंगल में अकेला जाकर सारा पैसा निकाल घर ले आता हैं।

कुछ दिनों बितने के बाद राजू के माता-पिता राजू को जंगल से पैसे लाने को कहते हैं।
राजू-सोनू के पास जाकर बोलता हैं, भाई सोनू मुझें उन रूपयों की जरूरत हैं। जंगल चलोगे क्या?
सोनू यह बात सुनते ही राजू के साथ जंगल की ओर निकल पड़ता हैं। पीपल का पेड़ आते ही सोनू बोलता है, मैं थक गया मैं बैठता हूं तुम रूपये गड्ढा खोदकर रूपये निकाल लो।

राजू खुदाई का काम करने लगता हैं, काफी खुदाई करने के बाद जब उसे पैसे वहां नही दिखते तो राजू- सोनू को कहता है, यहां तो कोई रूपये की गठरी नही दिख रही हैं।

सोनू कहता हैं यह क्या बोल रहे हो, कहा गई गठरी तुमने ही तो मिट्ठी के अंदर दबाया था।
राजू दबाया तो था परन्तु अब वह यहां नही हैं।

सोनू गुस्से से आग बबूला होकर राजू से कहता है, गठरी के पैर हैं जो मिट्टी से निकल कर कहीं चला जाएगा।
राजू सोनू की बातों का काई जवाब नहीं देता हैं वह खूद सोचता रहता हैं कि आखिर ये मेरे साथ ही क्यों हुआ? अब मैं अपने माता-पिता को क्या कहूंगा?

सोनू अपना नाटक जारी रखते हुए जोर-जोर से राजू को डांटने लगता हैं उसपर चिल्लाने लगता है। यह पैसा तुमने ही चुराया होगा, क्योंकि रखा भी तुमने ही था। मैंने तुम पर विश्वास किया राजू और तुमने मुझें धोखा दिया। आज से हम दोनों की दोस्ती खत्म तुम अपना चेहरा भी मुझें मत दिखाना, चोर कहीं के इतना बोलकर राजू को कोसता हुआ सोनू गांव वापस लौट जाता है।

राजू थोड़ी देर उस पेड़ के नीचे बैठकर, वह भी अपना घर लौट जाता है। वह सोचता हैं कि सारे पैसे जरूर किसी चोर ने वहां से निकाल लिए होगें। जब हम पैसे रख रहे होगें, पीपल के पेड़ के नीचे तो वहां कोई तीसरा व्यक्ति जरूर होगा। राजू को सोनू पर जरा भी शक नहीं था।
राजू को परेशान देखकर उसके पिता जी राजू से पूछते हैं, क्या हुआ बेटा इतना परेशान क्यों हो?

राजू जंगल की सारी बात अपने पिताजी को बता देता हैं। वह बोलते है, सोनू तुम्हें बेवकूफ बना रहा हैं। हो ना हो यह चोरी सोनू ने ही की होगी। उसे रूपये देखकर मन में लालच उत्पन्न हो गया होगा।

तुम अभी सोनू के पास जाकर बोलो कि पीपल का पेड़ बात करता है। उसने चोर को उस पेड़ से धन निकालते देखा है, पर वह पेड़ मुझे अकेले में नहीं उस चोर का नाम बताने को तैयार नहीं। उसने कहा कि तुम दोनों दोस्तों का पैसा चोरी हुआ तो नाम भी तुम दोनों के सामने बताउंगा।

सोनू पहले तो जंगल जाने को राजी ना हुआ, पर राजू के बहुत ज्यादा बोलने पर उसने कहा रात होने वाली हैं, अब हम दोनों कल चलते हैं जंगल उस पीपल के पेड़ के पास।

राजू- सोनू को बोलता ठीक हैं कल चलते हैं, यह बोलकर राजू अपने घर वापस आ गया।

रात ढ़लने के बाद सोनू अपने बेड पर सोया-सोया राजू की बात सोच रहा था, उसे राजू की बात पर यकिन ना था। पेड़ भी बोलते है, पर कहीं सचमूच पेड़ बोलता है और कल उसने मेरा नाम राजू को बता दिया तो मैं इस गांव में कैसे रहूंगा, सब मुझें चोर बोलगें।

सोनू के मन में उथल-पुथल मच रही थी। अचानक सोनू अपने बिस्तर से उठकर खड़ा हो गया। उसके बाद उसने सोचा क्यों ना मैं चोरी किए रूपये को वापस उस पेड़ के नीचे रख दूं और उस पेड़ से हाथ जोड़कर मांफी मांग लूंगा, ताकि वह मेरा नाम राजू का ना बोले, हां, यह सही होगा। यह सोचकर सोनू सारे पैसे लेकर रात को जंगल में पेड़ के नीचे रखने को चल दिया।

इघर राजू और उसके पिता जंगल में ही मौजूद थे, सोनू को रंगे हाथों पकड़ने के लिए। उन्हें यकिन था कि आज रात सोनू जंगल जरूर जाएगा।
सोनू जंगल आते ही उस पेड़ से बातें करने लगा, मुझें माफ कर दो। मुझें मालूम नहीं था कि तुम बाते करते हो, मैं यह सारे पैसे तुम्हारे जड़ों की मिट्टी में रख देता हूं। तुम राजू को मेरा नाम मत बताना।

यह बाते सुनते ही राजू के पिता पीपल के पेड़ के पीछे से बोलते हैं- मुर्ख सोनू, यह पैसे तुम्हारे और राजू के आधे-आधे है, पर तुम उससे छल कर सारे रूपये अकेले लेने हड़प करना चाहते थे, मांफी मांगना है तो अपने दोस्त राजू से मांगों मुझसे नहीं।

सोनू जंगल में उस आवाज को सुनते ही डर गया और बोला ठीक हैं, मैं राजू को सब कुछ बता दूंगा और उससे मांफी भी मांग लूंगा। सारा पैसा जंगल में छोड़कर सोनू वहां से अपने घर लोट गया।

अगली सुबह सोनू राजू के घर जाकर अपनी गलती की माफी मांग लेता हैं। राजू- अपनी दोस्ती के खातिर उसे माफ कर देता है, क्योंकि सोनू को अपनी गलती का एहसास हो जाता हैं। दोनों जंगल में जाकर सारे रूपये अपने साथ ले आते हैं और आपस में बराबर-बराबर बांट लेते हैं।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती हैं मेहनत करने से ही आप आगे बढ़ सकते हैं, कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए। झूठ बोलने वाले पर कोई भी भरोसा नहीं करेगा और सभी रिश्ते को मान और सम्मान देना चाहिए।

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