10 lines short stories with moral | 10 लाइन शार्ट स्टोरी विथ मोरल- आज हम आपके लिए छोटी स्टोरी लेकर आये हैं। जिससे आपको बहुत कुछ सिखने को मिलने वाला है। आइये हम 10 लाइन शार्ट स्टोरी विथ मोरल को पढ़ना शुरू करते हैं।
10 lines Short Stories with Moral
छोटे बच्चों का कहानियों से न केवल मनोरंजन होता है बल्कि उनको उस कहानियों से काफी कुछ सीखने को मिलता भी है। आइये हम उनके लिए 10 lines short stories with moral को पढ़ते हैं-
चालाक लोमड़ी और कौआ
एक दिन की बात है, एक कौआ को बहुत भुख लगी थी। वह जंगल में इधर-उधर कुछ खाने की तलास में ऊड़ता फिर रहा था। अचानक कौए की नजर एक राहगीर पर पड़ी वह जंगल में एक पेड़ के नीचे रोटी खा रहा था।
कौआ ने राहगीर की नजर बचा कर उसकी एक रोटी ले वहां से उड़ गया. जिसके बाद जंगल में एक पेड़ की उंची डाल पर बैठकर रोटी खाने लगा। तभी एक लोमड़ी की नजर उस पर पड़ी। उसे रोटी खाता देखा तो उसके मुंह में पानी भर गया। उसने सोचा कि किसी तरह उस कौए से रोटी हड़पनी चाहिए।
लोमड़ी की चालाकी तो जगप्रसिद्ध है। लोमड़ी ने झटपट एक योजना बनाई और उसी पेड़ के नीचे जा पहुंची। लोमड़ी ने कौए की ओर देखकर कहा, कौए भाइया! राम-राम। आप कैसे हो? कौए ने लोमड़ी की ओर देखा पर उसे कोई जवाब नही दिया और फिर रोटी खाने लगा।
लोमड़ी फिर कौए को बोली- कौए भईया, आज तो आप बहुत चमकदार और सुंदर लग रहे हों। आप की आवाज भी कितनी मधुर हैं, आप को तो पक्षियों के राजा बनने के सारे योग्य है। मगर जंगल के इन मूर्ख पक्षियों को कौन समझाए?
कौआ लोमड़ी की ओर देखा और मुस्कुरा दिया।
यह देख लोमड़ी समझ गयीं की कौआ उसकी बात में आने लगा है। लोमड़ी ने कौए की ओर देख उसे बोली- जरा मुझे अपनी मीठी आवाज में एक गीत तो सुनाइए। अपनी झूठी तारीफ सुनकर मूर्ख कौआ घमंड में आ गया और बोला- धन्य‐‐‐‐। उसने जैसे ही धन्यवाद देने के लिए अपनी चोेंच खोली, वैसे ही रोटी नीचे आ गिरी।
लोमड़ी ने लपककर रोटी उठाई और पलक झपकते ही नौ दो ग्यारह हो गई। मूर्ख कौआ लोमड़ी को देखता रह गया।
मूर्ख भेड़िया और समझदार पिल्ला।
एक बार की बात है। एक कुत्ते का पिल्ला अपने मालिक के घर के बाहर धूप में सो रहा था। मालिक का घर जंगल के पास ही था।
वहां अक्सर भेड़िया, गिदड़, लकड़बग्घे जैसे चालाक जानवर आते रहते थे। यह बात उस नन्हे पिल्ले को मालूम नही था।
उसका मालिक कुछ दिन पहले ही उसको वहां लाया था, वह अभी दो महिने का था, मगर वह बहुत ही समझदार था।
अचानक एक लोमड़ी वहां आ गई। उस पिल्ले को अकेला सोता देख उसे दबोच लिया। अचानक पिल्ला अपने नजदीक लोमड़ी को देख डर गया पर वह घबराया नहीं धैर्य से बोला- लोमड़ी भाई! अब तुमने मुझे पकड़ लिया, तो खा भी लो पर खाने से पहले मेरी एक बात सुन लो इसमे तुम्हारा ही फायदा है।
लोमड़ी ने बोला बता मेरा क्या फायदा हैं?
देखो भाई! मैं यहां नया-नया आया हूं, इसलिए इतना दुबला और निर्बल हूं। कुछ दिन खा-पीकर मोटा- ताजा हो जाने दीजिए। फिर आकर आप मुझें खा लेना। वैसे भी में अभी बच्चा हूं, मुझे खा कर भी शायद आपकी भूख ना मिटे।
लोमड़ी पिल्ले की बातों में आ जाती है और पिल्ले को चारो ओर से घुमकर देखने के बाद बोला, बात तो तुम सही कह रहे हो। तुझे अभी खाने से कोई फायदा नहीं मेरी भूख नहीं मिटने वाली इसलिए तुम अभी खा पीकर मजबूत हो जा, फिर तुम्हें कुछ दिनों के बाद खाउंगी। लोमड़ी पिल्ले को छोड़कर वहां से चली जाती है।
लोमड़ी को जाते देख पिल्ला घर के अंदर दौड़कर चला जाता हैं, और खुद से वादा करता है कि आज के बाद वह कभी अकेला घर से बाहर नहीं जाएगा और असुरक्षित जगह पर कभी नहीं सोने की गलती करेगा।
कुछ महिनों के बाद लोमड़ी फिर से उस घर के पास आकर उस पिल्ले को ढूंढ रही थी और उस पिल्ले को आवाज लगा रही थी। तभी उस घर के छत पर उसकी नजर गई तो वह वहां से लोमड़ी को देख मुस्कुरा रहा था। लोमड़ी ने उसे देखकर बोली बाहर आ जा मुझें बहुत भूख लगीं हैं। अपने वादे के अनुसार मेरे पास आकर मेरी भूख मिटा।
मगर अब वह पिल्ला कहा रहा वह तो बड़ा हो गया था और पहले से अधिक समझदार भी। उसने घर की छत से उत्तर दिया- अरे वो मूर्ख! मृत्यु का भी कोई वचन दिया हैं? कभी किसी ने जा अपनी मुर्खता पर तुम जिन्दी भर पछताता रहेगा।
लोमड़ी इतना सुनते ही वहां से चुपचाप चली गई।
सच हैं, समझदारी व सूझ-बूझ से मौत को भी टाला जा सकता हैं।
कृतध्न का क्या भरोसा
एक चरवाहा अपने भेड़ें और बकरियां गांव के पास वाले जंगल में चरा रहा था। तभी अचानक मौसम खराब हो गया, तेज हवाएं चलने लगीं, बादल गरजने लगा। बदल गरजने की आवाज सुनकर बकरियां और भेड़ इधर-उधर भागने लगें।
अचानक चरवाहें की नजर एक गुफा पर पड़ी, चरवाहें ने सोचा क्यों ना सब को लेकर यहीं चला जाउं, मौसम ठीक हो जाने पर गांव लौट जाउंगा। मगर जब चरवाहा गुफा के पास पहुंचा, तो उसकी आंखें खुली की खुली रह गयीं। उस गुफा में पहले से जंगली भेड़ें और उनके बच्चे भरें पड़े थे। उसकी अपने भेड़े बाहर ही रूककर मैं-मैं करने लगे।
चरवाहे ने उन भेड़ों को देखकर सोचा कि ये जंगली भेड़ें तो आज खूब हाथ लगीं। इन्हें चारा आदि खिलाकर फुसलाना चाहिए ताकि मौसम ठीक होते ही ये भी मेरे साथ ही गांव की तरफ चल पड़ें।
इतनी भेड़ें अगर मेरे पास होगी तो पूरे गांव में मेरी धाक जम जाएगी। बस यही, सोचकर उसने अपने भेड़ों और बकरियों को बाहर छोड़ दिया, जंगल से हरि घास काटकर खूद उनको खिलाने अंदर चला गया, चारा खिला-खिलाकर उन्हें फुसलाने लगा।
उसकी भेड़ें और बकरियां बाहर बारिश में भीगतीं रही ठंड से ठिठुरती, मैं-मैं करती रहीं पर चरवाहें को तो कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। वह लोभ में अंधा हो चुका था।
सारी रात बारिश होती रही और वह अंदर बैठा जंगली भेड़ों की सेवा करता रहा। जब सवेरा हुआ वह बाहर निकला तो देखा बारिश तो रूक चुकी हैं, मगर उसकी ढ़ेर सारी भेड़े और बकरियां तथा उनके बच्चे ठंड से ठिठुरकर मर चुके हैं। तभी अन्दर बैठी भेड़े बाहर निकलीं ओर सब की सब जंगल के अंदर चलीं गयीं।
यह देखकर चरवाहा गुस्से से बोला- अरी भेड़ों तुम कहां चली? क्या मैंने इसीलिए तुम्हारी रात भर सेवा की थीं?
भेड़ों की झूडं से एक भेड़ बोला- हे कृतध्न चरवाहे! तुम्हारी इन भेड़ों और बकरियों को देखकर हम समझ चूके हैं, की तुम इस तरह के हो। तुम लालची और स्वार्थी हो कल तुमने जिनको मरने के लिए बाहर छोड़ दिया, आज तक तुम उनसे ही अपना जीवन चला रहे थे।
जब तुम्हें उनके जीवन के लिए नहीं सोचा तो हम क्यूं तुम्हारे कल के सोचे यह बोलकर सभी वहां से चलें गए।
चरवाहे को अपनी गलती का एहसास हो गया वह चुपचाप सभी भेड़ों को देखता रह गया।
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